कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान: क्यों है मिश्रित धरोहर स्थल?
भारत में वर्तमान में 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। इन 40 स्थलों में से 32 सांस्कृतिक हैं, सात प्राकृतिक हैं, और एक मिश्रित है। सिक्किम में स्थित कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (Kanchenjunga National Park) मिश्रित धरोहर स्थल (mixed type) है। ऐसा इसलिए कि यह प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक, दोनों प्रकार के धरोहरों को संजोये हुए है।
सिक्किम में स्थित कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान में कंचनजंगा पर्वत स्थित है, जो दुनिया की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। यह पार्क एक महत्वपूर्ण बायोस्फीयर रिजर्व भी है, जहाँ कई प्राचीन मूल वन, पहाड़ी झीलें, घाटियाँ और मैदान हैं जो वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों को प्रश्रय प्रदान करते हैं। इनमें से कुछ वनों में महत्वपूर्ण औषधीय पौधे हैं जो एंडेमिक प्रकृति के भी हैं। एंडेमिक (Endemic) का मतलब यह है कि यह प्रजाति किसी अन्य भौगोलिक क्षेत्र में प्राप्त नहीं होती है।
एक प्राकृतिक धरोहर के रूप में कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान हिमालय वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट (Himalaya global biodiversity hotspot) का हिस्सा है। यह उप-उष्णकटिबंधीय से अल्पाइन इकोसिस्टम का समर्थन करता है, और मध्य या उच्च एशियाई पहाड़ों में पौधों, पक्षियों और जानवरों की सघन प्रजातियां पाई जाती हैं।
इस क्षेत्र में 20 से अधिक पर्वत चोटियाँ हैं, जिनमें से अधिकांश वनस्पति युक्त भी है। इसका मतलब है कि इस उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में न केवल सबसे पुराने, बल्कि मूल वन भी हैं, जो मानव गतिविधियों से अप्रभावित हैं।
यह पार्क पूरे सिक्किम राज्य के लगभग 25% हिस्से को कवर करता है, और भारत की पक्षी विविधता का लगभग आधा और भारत के एक तिहाई फूलों के पौधे यहां प्राप्त होते हैं।
इस राष्ट्रीय उद्यान में कई फ्लैगशिप प्रजातियां जैसे हिम तेंदुआ, तिब्बती भेड़िया, लाल पांडा, नीली भेड़, हिमालयी तहर, मुख्य भूमि सीरो (mainland serow) भी पाई जाती हैं।
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान में कुल 18 ग्लेशियर हैं, जिनमें से सबसे बड़ा ज़ेमू ग्लेशियर (Zemu glacier) है, जो एशिया के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक है। रिकॉर्ड के अनुसार, इस क्षेत्र में 73 हिमनद झीलें हैं, इनमें से 18 उच्च ऊंचाई वाली झीलों में क्रिस्टल साफ पानी है।
सांस्कृतिक धरोहर के रूप में कंचनजंगा
यहां लेप्चा समुदाय निवास करते हैं। लेप्चा लोग, उनकी संस्कृति और भाषा संकट का सामना कर रही हैं.
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान उन बहुत कम स्थानों में से एक है जहाँ लेप्चा आदिवासी बस्तियाँ मिलती हैं। उनकी लुप्त होती हुई भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत प्रयास किए जा रहे हैं। लेप्चा को सिक्किम का सबसे पुराना और मूल निवासी माना जाता है।
लेप्चा संस्कृति और भाषा खतरे में होने के साथ, स्थानीय पौधों और उनके औषधीय गुणों के बारे में स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान के भी लुप्त होने का भी खतरा है।
कंचनजंगा पर्वत और इस क्षेत्र की कई अन्य नदियाँ, झीलें और गुफाएँ सिक्किम के लोगों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व की हैं क्योंकि ये स्थान बहुत सारी बौद्ध मान्यताओं से भी जुड़े हुए हैं। इन जगहों के बारे में बहुत सी पौराणिक कहानियां सिक्किम की पहचान का आधार बनती हैं।
इस क्षेत्र को बौद्धों की बेयूल (beyul ) या छिपी हुई पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है, और लेप्चा की मायल लियांग (Mayel Lyang ) या भगवान द्वारा धन्य भूमि के रूप में जाना जाता है।