वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)
वर्ष 1973 का ‘वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES: Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) सरकारों के बीच हस्ताक्षरित एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
- यह देशों की मंजूरी के माध्यम से सभी सूचीबद्ध प्रजातियों के व्यापार को विनियमित करने और जीवित जानवरों के नमूनों के बंदी (कैप्टिव) में रखने को विनियमित करने पर बल देता है ताकि इससे प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो।
- CITES एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका देश और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वेच्छा से पालन करते हैं।
- जिन देशों ने कन्वेंशन (CITES) से बाध्य होने पर सहमति व्यक्त की है, उन्हें पक्षकार के रूप में जाना जाता है।
- हालांकि CITES पक्षकारों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी है – दूसरे शब्दों में उन्हें कन्वेंशन को लागू करना होगा – लेकिन यह राष्ट्रीय कानूनों की जगह नहीं लेता है। इसके बजाय यह प्रत्येक पक्षकार द्वारा सम्मानित किए जाने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करने के लिए अपने घरेलू कानून में CITES को अपनाकर राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू किया जाए।
- वर्तमान में 184 देश इसके पक्षकार हैं।
- जब किसी देश की सरकार या एक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन यह निर्णय लेता है कि वह CITES के प्रावधानों से बाध्य होगा, तो वह डिपाजिटरी सरकार को लिखित रूप में इस आशय की एक औपचारिक घोषणा करके कन्वेंशन में शामिल हो सकता है। स्विट्जरलैंड डिपाजिटरी सरकार (Depository Government) की भूमिका में है।
- भारत ने 20 जुलाई 1976 को संधि की अभिपुष्टि (रैटिफाय) की।
- 38,700 से अधिक प्रजातियां – जिनमें जानवरों की लगभग 5,950 प्रजातियां और पौधों की 32,800 प्रजातियां शामिल हैं – CITES द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से अति-दोहन के खिलाफ संरक्षित हैं। इन्हें तीन परिशिष्टों में सूचीबद्ध किया गया है।