क्या है पेरिस क्लब (Paris Club)?
श्रीलंका के प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे के अनुसार, दो क्वाड सदस्य (भारत और जापान), और एक बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव सदस्य (चीन), और एक पेरिस क्लब सदस्य (जापान) और दो गैर-पेरिस क्लब सदस्य (भारत और चीन) उसका कर्ज संकट दूर करने में देश की मदद कर रहे हैं।
पेरिस क्लब (Paris Club) का इतिहास और उद्देश्य
पेरिस क्लब आधिकारिक कर्जदाताओं का एक अनौपचारिक समूह है जिसकी भूमिका कर्जदार देशों द्वारा अनुभव की जाने वाली भुगतान कठिनाइयों के समन्वित और स्थायी समाधान खोजने की है।
वर्ष 1955 में एक सैन्य तख्तापलट द्वारा अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जुआन डोमिंगो पेरोन को उखाड़ फेंकने के बाद, नया शासन कर्ज देने वालों से बेहतर सम्बन्ध बनाने के लिए उत्सुक था। उन्होंने शीघ्र ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की सदस्यता का अनुरोध किया।
इसका मतलब उनकी ऋण स्थिति को नियमित करना और अपने प्रमुख क्रेडिटर देशों के साथ बैठक करना था। यह बैठक 16 मई 1956 को पेरिस में फ्रांस के अर्थव्यवस्था मंत्री के निमंत्रण पर हुई थी और इस तरह ‘पेरिस क्लब’ (Paris Club) अस्तित्व में आया।
अब, पेरिस क्लब, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के साथ, दुनिया की अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए विकसित देशों का एक रणनीतिक साधन बन गया है।
क्लब अभी भी पेरिस में बर्सी में फ्रांसीसी अर्थव्यवस्था मंत्रालय के परिसर में बैठक करता है, जहां इसका मुख्यालय है।
पेरिस क्लब का उद्देश्य ऋण के पुनर्भुगतान की कठिनाइयों वाले विकासशील देशों के ऋण पर फिर से वार्ता करना है।
मूल रूप से ग्यारह सदस्यों वाल यह क्लब अब बीस हो गया है।
इसके सदस्य हैं; ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इज़राइल, इटली, जापान, नीदरलैंड, नॉर्वे, रूस, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, यूके, और संयुक्त राज्य अमेरिका। अन्य क्रेडिटर देश कभी-कभी इसमें भाग ले सकते हैं।
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