वैधानिक ट्रिब्यूनलों पर संवैधानिक अदालतों के आदेश प्रभावी होंगे-सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने 1 जून 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) द्वारा विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) स्थित ऋषिकोंडा पहाड़ियों में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आदेश को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि वैधानिक न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनलों) पर संवैधानिक अदालतों के आदेश प्रभावी होंगे।
- शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जब मामला उच्च न्यायालय के विचाराधीन था तो NGT के लिए इस पर आगे बढ़ना उचित नहीं था।
- जहां तक क्षेत्रीय न्यायाधिकार का सवाल है तो NGT हाई कोर्ट के अधीनस्थ है।
- NGT और हाई कोर्ट द्वारा जारी विरोधाभासी आदेशों से विषम स्थिति पैदा हो जाएगी। अधिकारी मुश्किल में फंस जाएंगे कि किसके आदेश का पालन करें। ऐसे मामले में वैधानिक ट्रिब्यूनलों पर संवैधानिक अदालत के आदेश प्रभावी होंगे।
- इसी मामले में पर सर्वोच्च न्यायालय इस बात पर आश्चर्य जताया था कि NGT सांसदों द्वारा दाखिल पत्र याचिका पर सुनवाई क्यों कर रहा है। इस मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि आगे कहा कि NGR में पत्र याचिका दाखिल करने का अधिकार वंचितों और ऐसे व्यक्तियों के लिए उपलब्ध है जो अदालतों का रुख नहीं कर सकते। आम नागरिक और विधायक नहीं।
ट्रिब्यूनल और संविधान
- संविधान के अनुच्छेद 323A में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और 323B के तहत अन्य मामलों में ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान है।
- संविधान के 42वें संशोधन ने भाग XIV-A जोड़ा था जिसमें अनुच्छेद 323A और 323B शामिल थे जो प्रशासनिक मामलों और अन्य मुद्दों से निपटने वाले ट्रिब्यूनल के गठन का प्रावधान करते हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट 2010 के तहत 18 अक्टूबर 2010 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal ) की स्थापना पर्यावरण संरक्षण और वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और त्वरित निपटान के लिए की गई है।
- इसके अधिकार क्षेत्र में पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार को लागू करना और व्यक्तियों और संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजा और राहत देना शामिल है।
- यह बहु-विषयक मुद्दों से जुड़े पर्यावरणीय विवादों को संभालने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता से लैस एक विशेष निकाय है।
- NGT सिविल प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1908 के तहत निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होगा, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होगा।
- नई दिल्ली में ट्रिब्यूनल की प्रधान पीठ है और भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई ट्रिब्यूनल की चार अन्य पीठें हैं।
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