मूल कर्तव्यों को लागू करने की मांग वाली याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया
सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में प्रदत्त मूल कर्तव्यों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सुपरिभाषित कानून/नियम बनाने का निर्देश देने संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार और राज्यों से 21 फ़रवरी को जवाब माँगा है । न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की खंडपीठ ने शीर्ष अदालत के वकील दुर्गा दत्त की याचिका पर नोटिस जारी किये हैं।
- याचिका में तर्क दिया गया है कि संविधान के भाग IV-A के तहत निर्धारित जनादेश का पालन सुनिश्चित करने के निर्देश जारी करने की मांग की गई है और कहा गया है कि उनका पालन न करने का सीधा असर अनुच्छेद 14, 19, 21 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल और उससे मिलने वाली खुशी पर पड़ता है।
- याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि मूल कर्तव्य को लागू करने की आवश्यकता प्रदर्शनकारियों द्वारा वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में सड़क और रेल मार्गों को अवरुद्ध करके विरोध की एक नई अवैध प्रवृत्ति के कारण उत्पन्न होती है, ताकि सरकार को उनकी मांग मनवाने के लिए मजबूर किया जा सके।
मूल कर्तव्य
- भारत के संविधान के भाग 4 A के अनुच्छेद 51(A) में 11 मूल कर्तव्यों का उल्लेख है। आपातकाल के दौरान भारतीय संविधान में 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया गया था।
- 10 कर्तव्यों को 42वें संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था जबकि शिक्षा का अधिकार से संबंधित 11वें मौलिक कर्तव्यों को वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन के ज़रिये संविधान में शामिल किया गया था।
- मूल कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर ही लागू होते हैं।
- भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों की अवधारणा पूर्व सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित है।
11 मूल कर्तव्य
- संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्र गान का आदर करना।
- स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना।
- देश की रक्षा करना और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करना।
- भारत के लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करना जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग आधारित सभी प्रकार के भेदभाव से परे हो। साथ ही ऐसी प्रथाओं का त्याग करना जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
- हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देना और संरक्षित करना।
- वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीव सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना और प्राणिमात्र के लिए दयाभाव रखना।
- मानवतावाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करना।
- सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना एवं हिंसा से दूर रहना।
- व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिये प्रयास करना ताकि राष्ट्र लगातार उच्च स्तर की उपलब्धि हासिल करे।
- 6 से 14 वर्ष तक के आयु के अपने बच्चों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना। (86वें संविधान द्वारा जोड़ा गया)