पाल-दाधवाव नरसंहार (Pal-Dadhvav killings) की 100 वर्षगांठ
गुजरात सरकार ने 7 मार्च को, पाल-दाधवाव नरसंहार (Pal-Dadhvav killings) की 100 वर्षगांठ पर इसे “जलियांवाला बाग से भी बड़ा नरसंहार” कहा है। इससे पहले इस नरसंहा को राज्य की गणतंत्र दिवस की झांकी में दिखाया गया था।
पाल-दाधवाव नरसंहार
- पाल-दाधवाव नरसंहार 7 मार्च, 1922 को साबरकांठा जिले के पाल-चितरिया और दाधवाव गांवों में हुआ था, जो उस समय इदर राज्य का हिस्सा था।
- मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में ‘एकी आंदोलन’ के हिस्से के रूप में पाल, दाधवाव और चितरिया के ग्रामीण वारिस नदी के तट पर एकत्र हुए थे।
- यह आंदोलन अंग्रेजों और सामंतों द्वारा किसानों पर लगाए गए भू-राजस्व कर (लगान) के विरोध में था।
- तेजावत के आदेश पर लगभग 2000 भीलों ने अपने धनुष-बाण उठाये और एक स्वर में चिल्लाये- ‘हम कर नहीं देंगे’।
- एमबीसी कमांडिंग ऑफिसर, एचजी सटन ने अपने आदमियों को उन पर गोली चलाने का आदेश दिया। लगभग 1,000 आदिवासी (भील) गोलियों से भून गए। जबकि अंग्रेजों ने दावा किया कि महज 22 लोग मारे गए, वहीं भीलों का मानना है कि इस नरसंहार में 1,200-1,500 लोग मारे गए।
- 13 अप्रैल, 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड में, जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर की सेना द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने के बाद 500-1,000 लोग मारे गए थे।
- इस साल गणतंत्र दिवस की परेड में पाल-दाधवाव नरसंहार को सुर्खियों में लाया गया था।