किसी भी व्यक्ति को टीका के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को सामुदायिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए जबरन टीकाकरण और सरकार की COVID-19 टीकाकरण नीति के खिलाफ एक व्यक्ति के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित किया, लेकिन राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन द्वारा कुछ सेवाओं का लाभ उठाने के लिए वैक्सीन की अनिवार्यता को गलत ठहराया। तमिलनाडु सरकार 100 प्रतिशत कोविड टीकाकरण के लिए इसे अनिवार्य कर दिया था।

जीवन का अधिकार

  • न्यायालय के मुताबिक वैक्सीन की अनिवार्यता बुनियादी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने और व्यक्तियों की आवाजाही की स्वतंत्रता को बाधित करती है।
  • न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन का अधिकार (right to life) के तहत शारीरिक अखंडता (bodily integrity) की रक्षा की जाती है और किसी भी व्यक्ति को टीका लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
  • अदालत ने शारीरिक अखंडता के व्यक्तिगत अधिकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सरकार की चिंता के साथ इलाज से इनकार करने के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को अनुच्छेद 21 के तहत इलाज से इंकार करने का अधिकार है।
  • आदेश में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तिगत स्वायत्तता के अधिकार में यह शामिल है कि उसे अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत स्वास्थ्य के क्षेत्र में किसी भी चिकित्सा उपचार से इनकार करने का अधिकार शामिल है।

स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को विनियमित करने का हकदार

  • केंद्र से COVID प्रतिरक्षण की प्रतिकूल घटनाओं पर डेटा सार्वजनिक करने के लिए कहते हुए, शीर्ष अदालत ने, हालांकि, कहा कि सामुदायिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के हित में, सरकार व्यक्तिगत अधिकारों पर कुछ सीमाएं लगाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को विनियमित करने की हकदार है, लेकिन संवैधानिक न्यायालयों द्वारा सरकार की इस कदम की जांच की जा सकती है ।
  • सरकार की वर्तमान COVID टीकाकरण नीति को बरकरार रखते हुए, अदालत ने कहा कि उपलब्ध सामग्री और विशेषज्ञ के विचारों के आधार पर कोविड टीकाकरण नीति को “स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता है ।
  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक याचिका पर आया, जिसमें वकील प्रशांत भूषण ने टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य डॉ. जैकब पुलियेल की ओर से तर्क दिया था।
  • याचिका में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जारी किए गए वैक्सीन मैनडेट को चुनौती दी गई थी, बच्चों के टीकाकरण पर आशंका जताई गई थी और सार्वजनिक डोमेन में अलग-अलग नैदानिक परीक्षण डेटा का खुलासा न करने, अनुचित संग्रह और कोविड टीकों के प्रतिकूल प्रभावों की रिपोर्टिग का मुद्दा उठाया गया था।

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