इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस
193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 मार्च को पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम द्वारा एजेंडा आइटम “कल्चर ऑफ पीस” के तहत पेश किए गए उस प्रस्ताव को अपना लिया है जिसमें 15 मार्च को “इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस” (International Day to Combat Islamophobia) के रूप में घोषित किया गया।
- इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की ओर से पाकिस्तान द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाया गया। इसे OIC के 57 सदस्यों और चीन और रूस सहित आठ अन्य देशों का समर्थन प्राप्त था।
भारत की चिंता
- भारत ने प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि एक विशेष धर्म का डर इस स्तर पर पहुंच गया है कि उसे एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ गई है। हालांकि, तथ्य यह है कि अन्य धर्मों, विशेष रूप से हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और सिखों के खिलाफ भय का माहौल बढ़ रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि इस्लामोफोबिया पर प्रस्ताव पारित होने के बाद अन्य धर्मों पर भी इसी तरह के प्रस्ताव पारित किए जा सकते हैं और संयुक्त राष्ट्र एक धार्मिक मंच बन सकता है।
- उन्होंने कहा इसलिए इस संकल्प को एक उदाहरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। श्री तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत यहूदी फोबिया, ईसाई फोबिया या इस्लामोफोबिया से प्रेरित सभी कृत्यों की निंदा करता है, लेकिन ऐसे फोबिया केवल अब्राहमिक (Abrahamic) धर्मों तक ही सीमित नहीं हैं।
- उन्होंने हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी फोबिया के उद्भव की ओर इशारा किया। उन्होंने आगे कहा, हिंदू धर्म के 1.2 बिलियन से अधिक अनुयायी हैं, बौद्ध धर्म के 535 मिलियन से अधिक और सिख धर्म के 30 मिलियन से अधिक अनुयायी दुनिया भर में फैले हुए हैं।
- अब समय आ गया है कि हम केवल अलग-अलग फोबिया पर विचार करने के बजाय, सम्पूर्ण धार्मिक फोबिया के प्रसार को स्वीकार करें।
इस्लामोफोबिया
- इस्लामोफोबिया सामान्य रूप से इस्लाम या मुसलमानों के धर्म के प्रति भय, घृणा या पूर्वाग्रह है।