विश्व सूखा एटलस 2024
विश्व सूखा एटलस (World Drought Atlas 2024) को संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (UNCCD) और यूरोपीय आयोग संयुक्त अनुसंधान केंद्र द्वारा 2 दिसंबर, 2024 को लॉन्च किया गया। इस रिपोर्ट को UNCCD पक्षकारों की रियाद में 16वीं बैठक (UNCCD-COP16) में जारी किया गया।
रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक लगभग 75 प्रतिशत आबादी सूखे से प्रभावित होगी। रिपोर्ट में भारत में सूखे से संबंधित फसल विफलता की बेहतर समझ की वकालत की गई है, क्योंकि भारत में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक लोग (25 मिलियन से अधिक) कार्यरत हैं।
इस एटलस ने भारत में सूखे के कारण सोयाबीन की पैदावार में भारी नुकसान का पूर्वानुमान किया है। इसने 2019 में चेन्नई में ‘डे जीरो’ (जल संकट के बाद जल की राशनिंग) की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
जल संसाधनों के कुप्रबंधन और बड़े पैमाने पर शहरीकरण के परिणामस्वरूप शहर में जल संकट पैदा हो गया है, जिसमें औसतन सालाना 1,400 मिलीमीटर से अधिक वर्षा होती है। वर्तमान में लगभग 2.3 बिलियन लोग जल संकट में जी रहे हैं, तथा यह संख्या बढ़ने की आशा है, विशेष रूप से अफ्रीका में।
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD)
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD) की स्थापना 1994 में भूमि की रक्षा और उसे बहाल करने तथा एक सुरक्षित, न्यायपूर्ण और अधिक संधारणीय भविष्य सुनिश्चित करने के लिए की गई थी।
UNCCD मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रभावों से निपटने के लिए स्थापित एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है।
UNCCD में 197 पक्षकार हैं, जिनमें 196 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
UNCCD तीन रियो कन्वेंशन में से एक है। अन्य दो रियो कन्वेंशंस हैं; जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और जैव विविधता कन्वेंशन (CBD)।
ये तीनों 1992 के पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीईडी, या पृथ्वी शिखर सम्मेलन) में अपनाई गई कार्रवाई का कार्यक्रम था।