मियावाकी पद्धति (Miyawaki forest)

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ के 102वें संस्करण में केरल के शिक्षक श्रीमान राफी रामनाथ द्वारा मियावाकी पद्धति (Miyawaki forest) से लगाए गए ‘विद्यावनम्’  जंगल का जिक्र किया।

मियावाकी अकीरा मियावाकी नामक जापानी वनस्पतिशास्त्री द्वारा बनाई गई एक विधि है।

बता दें कि जापान की तकनीक मियावाकी, अगर किसी जगह की मिट्टी उपजाऊ नहीं रही हो, तो मियावाकी तकनीक, उस क्षेत्र को, फिर से हरा-भरा करने का बहुत अच्छा तरीका होती है। मियावाकी जंगल तेजी से फैलते हैं और दो-तीन दशक में जैव विविधता का केंद्र बन जाते हैं। अब इसका प्रसार बहुत तेजी से भारत के भी अलग-अलग हिस्सों में हो रहा है।  

यह जंगलों को तेजी से बढ़ने और घने और प्राकृतिक बनने में मदद करता है। इस प्रक्रिया में मिट्टी को गीली घास से ढककर उसमें सुधार करना शामिल है, जो सूखा, कटाव और खरपतवार की वृद्धि को रोकने में भी मदद करता है। फिर स्थानीय पेड़ों की पहचान की जाती है और उन्हें उस एरिया  में लगाया जाता है।

इस पद्धति में एक साथ कई अलग-अलग प्रकार के पेड़ लगाए जाते हैं, जो प्रजातियों के बीच एक संतुलित और सहकारी वातावरण बनाता है। इसका परिणाम यह होता है कि पौधे 10 गुना तेजी से बढ़ते हैं और जंगल सामान्य से 30 गुना अधिक सघन हो जाता है।

वाणिज्यिक वानिकी के विपरीत, मियावाकी वानिकी में, पौधों की केवल देशी किस्मों (native varieties of plants) को विशेष अनुपात और सीक्वेंस में चुना जाता है।

यह 100 प्रतिशत आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।

भारत में यह पद्धति धीरे-धीरे गति पकड़ रही है और दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों में पहले से ही चलन में है। मियावाकी केवल स्थानीय प्रजातियों का उपयोग करता है।  

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