जीन-ड्राइव तकनीक (Gene Drive Technology)

पिछले दो दशकों में, जीवों के जीनोम को पढ़ने या सीक्वेंस  करने और इन जीनोम को एडिट और संशोधित करने की हमारी क्षमता ने हमें इस लड़ाई में नए उपकरण दिए हैं। अगली पीढ़ी की सीक्वेंस तकनीकों में प्रगति की वजह से अब  कई मच्छर प्रजातियों के संपूर्ण जीनोम सीक्वेंस किया जा सकता है।

मच्छरों के आनुवंशिक संशोधन के पीछे मूल विचार उनके प्रजनन में हस्तक्षेप करके उनकी आबादी को व्यवस्थित रूप से नियंत्रित करना है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने विभिन्न आनुवंशिक मॉडिफिकेशन तकनीक विकसित किए हैं। इस प्रयास में एक प्रमुख उपलब्धि जीन-ड्राइव तकनीक (gene drive technology) है।

इस तकनीक का लक्ष्य विरासत सम्बन्धी मच्छरों के मामले में मेंडेलियन आनुवंशिकी (Mendelian genetics) के नियमों का पालन करने की बजाय चुनिंदा जीनों को प्राप्त करना है।

जीन ड्राइव एक प्रकार की आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक है जो जीन को संशोधित करती है ताकि वे आनुवंशिकता के विशिष्ट नियमों का पालन न करें। जीन ड्राइव नाटकीय रूप से इस संभावना को बढ़ावा देती है कि जीन का एक विशेष समूह अगली पीढ़ी में स्थानांतरित हो जाएगा, जिससे जीन तेजी से उस प्रजाति की आबादी में फैल जाएंगे और प्राकृतिक चयन पर हावी हो जाएंगे।

CRISPR-Cas9 बैक्टीरिया से प्राप्त जीन एडिटिंग तकनीक है, और यह शोधकर्ताओं के लिए जीन ड्राइव बनाना आसान बना  रहा है। जीन ड्राइव प्रौद्योगिकी के साथ, एक वैज्ञानिक जीवों के अनुवांशिक विकासवादी मार्ग को संशोधित कर सकता है। यह किसी सम्पूर्ण प्रजाति की विलुप्ति का कारण बन सकती है।

यह मलेरिया पैदा करने वाले मच्छरों जैसी खतरनाक प्रजातियों को खत्म करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। आनुवंशिक रूप से संशोधित मच्छरों का उपयोग भारत, ब्राज़ील और पनामा में बाहरी लेकिन नियंत्रित स्थितियों में भी किया गया है।

वोल्बाचिया (Wolbachia)

गौरतलब है कि पूरे मानव इतिहास में, मच्छर लगातार मानव अस्तित्व के बैकग्राउंड में भिनभिनाते रहे हैं,  और लोगों को काटकर कभी-कभी घातक बीमारियाँ फैलाकर कहर बरपाते रहे हैं।

जीवाश्म रिकॉर्ड से सबसे पहले ज्ञात मच्छरों का इतिहास कम से कम 70 मिलियन वर्ष पुराना है, और मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का प्रमाण 2000 ईसा पूर्व मिस्र की ममियों से मिलता है।

मलेरिया के अलावा, जो हर साल पांच लाख से अधिक लोगों की जान ले लेता है, मच्छर कई अन्य बीमारियों के वाहक के रूप में काम करते हैं। इनमें डेंगू, जीका, लिम्फेटिक फाइलेरिया और येलो फीवर शामिल हैं। जाहिर है, इन छोटे, खून-चूसने वाले कीड़ों के साथ हमारा रिश्ता सौहार्दपूर्ण नहीं रहा है।

दुनिया की आबादी के तेजी से शहरीकरण के कारण, विशेष रूप से भारत जैसे कई बड़े और आर्थिक रूप से विकासशील देशों में, डेंगू जैसी मच्छर जनित बीमारियों में वार्षिक वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन और इसके व्यापक परिणामों के साथ, मच्छर जनित बीमारियाँ नए क्षेत्रों में फैल गई हैं।

एक उल्लेखनीय उदाहरण हाल के वर्षों में फ्रांस में डेंगू के देशज मामले का सामने आना है।

मच्छर नियंत्रण आज केंद्र में आ गया है और इस  लड़ाई विभिन्न प्रकार के उपकरणों के साथ परीक्षण किया जा रहा है। इनमें मच्छरदानी से लेकर कीटनाशकों और वोल्बाचिया (Wolbachia) जैसे सिम्बायोसिस  के उपयोग शामिल हैं।

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