कुदावोलाई चुनावी प्रणाली

गणतंत्र दिवस परेड 2024 में कर्तव्य पथ पर तमिलनाडु की झांकी ने कुदावोलाई चुनावी प्रणाली (Kudavolai electoral system) के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाया था। यह प्रणाली 10 वीं शताब्दी के चोल युग के दौरान प्रचलित थी और लोकतंत्र की दिशा में एक प्रारंभिक प्रगति का प्रतीक थी।

झांकी में उत्तमेरूर में वैकुंठ पेरुमल मंदिर (कांचीपुरम) का एक स्केल मॉडल भी दिखाया गया, जहां कुदावोलाई प्रणाली प्रचलित थी, जो स्थानीय संस्कृति में इसके एकीकरण को प्रदर्शित करता है।

उत्तरमेरुर शिलालेख कुदावोलाई प्रणाली के बारे में बताता है। यह प्रणाली चोलों के ग्राम प्रशासन (village administration of the Cholas) की एक बहुत ही उल्लेखनीय और अनूठी विशेषता थी।

इस व्यवस्था के तहत प्रत्येक गाँव में 30 वार्ड थे। प्रत्येक वार्ड के लिए एक प्रतिनिधि कुदावोलाई प्रणाली के माध्यम से चुना जाता था।

उम्मीदवारों के नाम ताड़ के पत्ते के टिकटों पर लिखे गए थे। इन ताड़ के पत्तों को एक बर्तन में डालकर मिला दिया जाता था। एक बालक गमले से एक-एक करके ताड़ के पत्ते निकालता था। जिन व्यक्तियों के नाम के टिकट पर लिखे होते थे, उन्हें निर्वाचित घोषित कर दिया जाता था।

इस प्रकार तीस वार्डों के लिए 30 सदस्य निर्वाचित होते थे। इस प्रकार की अनोखी चुनाव प्रणाली को कुदावोलाई प्रणाली (Kudavolai electoral system) कहा जाता था।

इसमें सदस्यों की योग्यता की जानकारी भी दी गयी है। कुदावोलाई प्रणाली के माध्यम से चुने जाने वाले व्यक्ति की आयु 35 से 70 वर्ष के बीच होनी चाहिए। उसके पास एक वेली भूमि और कर योग्य अपनी भूमि में बना एक घर होना चाहिए। उसे वेदों और मंत्रों का ज्ञान होना चाहिए।

जो व्यक्ति ब्राह्मणों या महिलाओं या गाय या बच्चों की हत्या करते थे उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। चोरों, शराबियों और सज़ा भुगत चुके लोगों को भी कुदावोलाई प्रणाली से चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

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