समान नागरिक संहिता (UCC) पर प्राइवेट मेंबर बिल राज्यसभा में पेश किया गया
समान नागरिक संहिता (UCC: Uniform Civil Code) तैयार करने के लिए एक पैनल गठित करने के प्रावधान वाल एक निजी सदस्य विधेयक (private member’s Bill) 9 दिसंबर को राज्यसभा में पेश किया गया। भारतीय जनता पार्टी के सदस्य किरोड़ी लाल मीणा ने समान नागरिक संहिता की तैयारी और पूरे भारत में इसके कार्यान्वयन के लिए ‘राष्ट्रीय निरीक्षण और जांच समिति’ (national inspection and investigation committee) के गठन के लिए विधेयक पेश करने की अनुमति मांगी।
समान नागरिक संहिता के बारे में
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44, भाग 4 में कहा गया है, “राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा”।
- समान नागरिक संहिता नागरिकों के व्यक्तिगत कानूनों को बनाने और लागू करने का प्रस्ताव करता है जो जाति, धर्म और सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बावजूद हर भारतीय पर लागू होगा। इसके तहत विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार जैसे सभी व्यक्तिगत मामलों को सभी व्यक्तियों के लिए समान रूप से निपटाया जाएगा।
- नवंबर 2021 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता को “आवश्यकता” करार दिया और कहा कि यह “आज अनिवार्य रूप से आवश्यक है।”
- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि ऐसे कानून भारत में प्रचलित “विविधता में एकता के मूल्यों” के प्रतिकूल है। कुछ सामाजिक संगठनों का विचार है कि समान नागरिक संहिता उनके रीति-रिवाजों और धार्मिक प्रथाओं को प्रभावित कर सकता है।
- बता दें कि शाह बानो मामले में, सर्वोच्च अदालत ने तलाक पर मुस्लिम महिलाओं को उनके पति से भरण-पोषण का अधिकार देकर सभी धर्मों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को लागू करने का प्रयास किया था। हालाँकि, इस फैसले को बाद में संसद द्वारा मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित कर निरस्त कर दिया गया।
- वर्ष 2018 में, विधि आयोग ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा बहुत बड़ा है और कि “इसके संभावित नतीजों का भारत में परीक्षण नहीं किया गया है।”
- गौरतलब है कि समान नागरिक संहिता लागू करने वाला गोवा एकमात्र राज्य है। 1867 का गोवा का पुर्तगाली नागरिक संहिता राज्य में प्रचलित एक कॉमन परिवार कानून का एक उदाहरण है। पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867, गोवा में रहने वाले व्यक्तियों के संबंध में उत्तराधिकार और विरासत के अधिकार के साथ-साथ अन्य सभी नागरिक अधिकारों को प्रशासित करता है। यह कानून राज्य के सभी नागरिकों पर लागू है, भले ही उनका धर्म कोई भी हो।
प्राइवेट मेंबर बिल
- प्राइवेट मेंबर बिल ऐसे संसद सदस्य (सांसद) द्वारा पेश किया गया विधेयक है, जो मंत्री नहीं है। वैसे ऐसे बिल अधिकांशतया विपक्षी सांसद सदन में लाते हैं।
- मंत्रियों द्वारा पेश किए गए विधेयकों को सरकारी विधेयक कहा जाता है। सरकारी विधेयकों को सरकार का समर्थन प्राप्त होता है और यह इसके विधायी एजेंडे को दर्शाता है।
- प्राइवेट मेंबर बिल को स्वीकार किया जाना है या नहीं इसका निर्णय लोकसभा के अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति द्वारा किया जाता है।
- एक सांसद जो प्राइवेट मेंबर बिल पेश करना चाहता है, उसे सदन सचिवालय को संवैधानिक प्रावधानों और कानून के नियमों के अनुपालन के लिए इसकी जांच करने के लिए कम से कम एक महीने का नोटिस देना होता है।
- जहां एक सरकारी विधेयक को किसी भी दिन पेश किया जा सकता है और उस पर चर्चा की जा सकती है, वहीं प्राइवेट मेंबर बिल केवल शुक्रवार को पेश किया जाता है और उस पर चर्चा की जाती है।
- पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, 1970 के बाद से संसद द्वारा कोई प्राइवेट मेंबर बिल पारित नहीं किया गया है। अब तक, संसद ने ऐसे 14 विधेयक पारित किए हैं, जिनमें से छह 1956 में पारित किए गए थे।