भारत सरकार, असम सरकार और उल्फा के प्रतिनिधियों के बीच शांति समझौता पर हस्ताक्षर

केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह की उपस्थिति में, भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा/ULFA) के प्रतिनिधियों के बीच  29 दिसंबर, 2023 नई दिल्ली में एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Settlement) पर हस्ताक्षर किए गए।

इस समझौते के तहत, उल्फा प्रतिनिधियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने, सभी हथियार डालने और अपने सशस्त्र संगठन को खत्म करने पर सहमति व्यक्त की है।

इसके अलावा उल्फा अपने सशस्त्र कैडरों के कब्जे वाले सभी शिविरों को खाली करने, कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने और देश की अखंडता को बनाए रखने पर भी सहमत हुआ है।

भारत सरकार का गृह मंत्रालय उल्फा की मांगों को पूरा करने के लिए एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाएगा और इसकी मॉनिटरिंग के लिए एक समिति भी बनाई जाएगी जो असम सरकार के साथ मिलकर समझौते को पूरा करने का प्रयास करेगी।

गौरतलब है कि पिछले 40 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है कि इस उग्रवादी संगठन ने शांति समझौता किया है। हालांकि, इसमें उल्फा का एक गुट अभी शामिल नहीं है।  

केंद्र सरकार 12 वर्षों से अधिक समय से अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट के साथ बिना शर्त बातचीत कर रही थी।

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम की स्थापना अप्रैल 1979 में हुई थी। इस संगठन को बनाने वाले  नेता थे परेश बरुआ, अरबिंद राजखोवा और अनूप चेतिया। ये तीनों असम को एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य बनाना चाहते थे।

1990 में ब्रिटेन में भारतीय मूल के व्यवसायी लॉर्ड स्वराज पॉल के भाई चाय बागान मालिक सुरेंद्र पॉल की उल्फा ने हत्या कर दीथी। इससे संगठन चर्चा में आ गया था।  

इसकी हिंसात्मक गतिविधियों को देखते हुए 1990 में भारत सरकार ने इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया।

28 नवंबर 1990 को सेना ने उल्फा के खिलाफ ऑपरेशन बजरंग शुरू किया था।

बाद में केंद्र सरकार की बढ़ती कोशिशों के बाद इसके नेता अरबिंद राजखोवा ने सरकार के साथ वार्ता शुरू कर दी, लेकिन संगठन के कमांडर परेश बरुआ इसके खिलाफ रहे। इसके बाद उल्फा दो हिस्सों में बंट गया।

सरकार से वार्ता के समर्थक अरबिंद राजखोवा के साथ रहे। उल्फा के इसी धड़े ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। वहीं, परेश बरुआ के गुट ने अब तक किसी भी तरह के शांति समझौते से दूरी बना रखी है। 

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