केंद्र सरकार ने कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म किया
केंद्र सरकार ने अपने द्वारा शासित स्कूलों में कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ (no-detention policy) को खत्म कर दिया, जिससे उन्हें साल के अंत में परीक्षा पास न करने वाले छात्रों को फेल करने की अनुमति मिल गई।
मुख्य बिंदु
यह अधिसूचना केंद्र सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों, सैनिक स्कूलों सहित 3,000 से अधिक स्कूलों पर लागू होगी। चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची (Concurrent subject) का विषय है, इसलिए राज्य सरकारें नो-डिटेंशन पॉलिसी को बनाए रखने या खत्म करने के संबंध में अपना निर्णय ले सकती हैं।
नो-डिटेंशन पॉलिसी के तहत कक्षा 5 और 8 में फेल होनेके बावजूद छात्रों/छात्राओं को अगली कक्षा में प्रोमोट कर दिया जाता था। अब यह पॉलिसी ख़त्म हो गई है।
2019 में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) में संशोधन के बाद, कम से कम 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कक्षा 5 और 8 में छात्रों को फेल होने पर उसी कक्षा में रोकने के लिए “बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा नियम, 2010” (Right of Children to Free and Compulsory Education Rules, 2010,) में एक सेक्शन जोड़ने के लिए संशोधन किया है।
एक राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, नियमित परीक्षा के संचालन के बाद, यदि कोई बच्चा समय-समय पर अधिसूचित अगली कक्षा में प्रमोशन मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे रिजल्ट घोषित होने की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर अतिरिक्त निर्देश और पुन: परीक्षा का अवसर दिया जाएगा। यदि पुन: परीक्षा में उपस्थित होने वाला बच्चा फिर से प्रमोशन मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे पांचवीं कक्षा या आठवीं कक्षा में रोक दिया जाएगा।
नो-डिटेंशन पॉलिसी (2009) की शुरुआत: शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 में निहित, इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि बच्चे फेल होने के डर से स्कूल जाने से हतोत्साहित न हों। इस नीति के तहत, छात्रों को फेल होने के बावजूद कक्षा 8 तक प्रमोट किया जाता था।
चुनौतियाँ: आलोचकों ने तर्क दिया था कि नो-डिटेंशन पॉलिसी के कारण लर्निंग आउटकम कमजोर हुआ और छात्रों में पढ़ने की जवाबदेही कम हो गई। रिपोर्ट्स से पता चलता है कि छात्रों को अक्सर बुनियादी कौशल में महारत हासिल किए बिना ही प्रमोट कर दिया जाता था, जिससे उच्च कक्षाओं में पढ़ाई छोड़ने की दर बहुत अधिक हो जाती थी।
RTE अधिनियम (2019) में संशोधन: 2019 के संशोधन ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कक्षा 5 और 8 की नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने की अनुमति दी। इसके बाद कम से कम 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने तब से नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म कर दिया है।
शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A): 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21A जोड़ा गया जो 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को मौलिक अधिकार देता है।
बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009: यह शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करता है और शिक्षा में यूनिवर्सल पहुँच, समानता और गुणवत्ता को अनिवार्य बनाता है। हाल ही में नीति में किया गया बदलाव RTE अधिनियम के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ज़ोर देने के अनुरूप है।
नो-डिटेंशन पॉलिसी को खत्म करने के सकारात्मक परिणाम: छात्रों और स्कूलों, दोनों के लिए अधिक जवाबदेही बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रोत्साहित कर सकती है। शिक्षक बुनियादी कौशल हासिल करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। छात्र कांसेप्ट की मजबूत समझ के साथ उच्च कक्षाओं में प्रवेश करेंगे।
चुनौतियाँ: जिन छात्रों को रोका जाता है, वे रुचि खो सकते हैं और बीच में ही पढाई छोड़ सकते हैं। स्कूलों को सुधारात्मक निर्देश और पुनः परीक्षा आयोजित करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होगी।