UN महासभा ने बहुभाषावाद पर भारत का प्रस्ताव अपनाया, पहली बार हिन्दी भाषा का उल्लेख
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA के 76 वें सत्र ने 10 जून, 2022 को बहुभाषावाद पर भारत द्वारा प्रायोजित संकल्प को अपनाया गया है। इस संकल्प ने संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक संचार विभाग ( UN’s Department of Global Communications) को बांग्ला, हिंदी और उर्दू को अपने संचार में आधिकारिक और गैर-आधिकारिक दोनों भाषाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इनमें पुर्तगाली, किस्वाहिली और फारसी जैसी भाषाओं का भी उल्लेख है।
छह आधिकारिक भाषाएँ
संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी (मैंडरिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल है।
इसके अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकामी भाषाएं हैं।
लेकिन, अब इसमें में हिंदी को भी शामिल किया गया है। इसका साफ मतलब यह है कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज, उसके उद्दश्यों की जानकारी UN की वेबसाइट पर अब हिंदी में भी उपलब्ध होगी।
अब गैर-आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी, बांग्ला और उर्दू को जोड़ने से संयुक्त राष्ट्र की सूचनाओं के प्रसार के लिए माध्यम के रूप में उनके उपयोग को संस्थागत बनाया जाएगा।
UN बहुभाषावाद संकल्प 13(1)
उल्लेखनीय है कि 1 फरवरी, 1946 को पहले सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने एक संकल्प पारित किया था।
संकल्प 13(1) के तहत UN ने कहा था, संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक दुनिया के लोगों को इसके उद्देश्यों और गतिविधियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं हो।
बहुभाषावाद (multilingualism) पर भारत कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में भारत की ओर से एक प्रस्ताव पेश किया गया था।
एक प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र की किसी भी आधिकारिक भाषा में बोल सकता है। भाषण की व्याख्या संयुक्त राष्ट्र की अन्य आधिकारिक भाषाओं में एक साथ की जाती है।
कभी-कभी, एक प्रतिनिधि गैर-आधिकारिक भाषा में बोल सकता है। लेकिन ऐसे मामलों में, प्रतिनिधिमंडल को आधिकारिक भाषाओं में से किसी एक में भाषण की व्याख्या या लिखित पाठ प्रदान करना होता है।
संयुक्त राष्ट्र के अधिकांश दस्तावेज़ सभी छह आधिकारिक भाषाओं में जारी किए जाते हैं, जिन्हें मूल दस्तावेज़ से अनुवाद की आवश्यकता होती है।