ब्रिटिश गृह सचिव ने शरणार्थी पर 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन” को फिर से लिखने मांग की

ब्रिटेन की गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन ने चेतावनी दी कि अनियंत्रित प्रवासन पश्चिमी देशों के लिए “अस्तित्व संबंधी चुनौती” है और उन्होंने शरणार्थी पर संयुक्त राष्ट्र 1951 के कन्वेंशन को फिर से लिखने मांग की, जिसने पिछले सात दशकों से वैश्विक शरण नीति को प्रभावित किया है।

उन्होंने आप्रवासन के प्रति दृष्टिकोण में वैश्विक बदलाव की भी मांग की।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन 1951

संयुक्त राष्ट्र 1951 कन्वेंशन (United Nations Refugee convention 1951) इस सिद्धांत को स्थापित करता है कि जिन देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, उन्हें संघर्ष या उत्पीड़न से भाग रहे नागरिकों की रक्षा करनी चाहिए।

यह दुनिया भर में शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए ब्रिटेन और लगभग 150 अन्य देशों द्वारा अनुमोदित एक कानूनी आधार है।

भारत 1951 शरणार्थी कन्वेंशन या उसके 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है और न ही उसके पास राष्ट्रीय शरणार्थी सुरक्षा फ्रेमवर्क है।

यह कन्वेंशन 1951 में तैयार किया गया था और तीन साल बाद लागू हुआ, उस युग के दौरान जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरे यूरोप में लाखों लोग विस्थापित हुए थे।

इसे मूल रूप से यूरोप के युद्ध के बाद के शरणार्थियों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार किया गया था – लेकिन 1967 के एक संशोधन (प्रोटोकॉल) ने मूल पाठ में शामिल भौगोलिक और समय सीमाओं को हटा दिया और इस कन्वेंशन को यूनिवर्सल बना दिया।

यह कन्वेंशन शरणार्थी की एक सहमत परिभाषा प्रदान करता है, उनके साथ व्यवहार के लिए बुनियादी न्यूनतम मानक स्थापित करता है, और कहता है कि शरणार्थियों को भागते समय इमीग्रेशन नियमों का उल्लंघन करने के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए।

इसका मूल सिद्धांत “नॉन-रिफॉलमेंट” (non-refoulement) है – जिसका अर्थ है कि यदि शरणार्थियों को अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिए खतरा है तो उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध शरण वाले किसी देश से वापस या निष्कासित नहीं किया जाना चाहिए।

यह मेजबान देशों के प्रति शरणार्थी के दायित्वों को भी परिभाषित करता है और युद्ध अपराधियों जैसे कुछ विशेष श्रेणियों के लोगों को शरणार्थी के रूप में पात्र नहीं मानता है।

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