मिशन मौसम: क्या है क्लाउड चैंबर?

हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो वर्षों में 2,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ ‘मिशन मौसम’ (Mission Mausam) को मंजूरी दी है।

“मिशन मौसम” का उद्देश्य एक्सटेंडेड ऑब्जरवेशन नेटवर्क, बेहतर मॉडलिंग और AI और मशीन लर्निंग जैसे आधुनिक उपकरणों के माध्यम से मौसम की समझ और पूर्वानुमान में सुधार करना है।

यह मिशन “मौसम प्रबंधन” (weather management) प्रौद्योगिकियों का पता लगाएगा और इसमें कृत्रिम रूप से बादलों को विकसित करने के लिए एक प्रयोगशाला स्थापित करना, रडार की संख्या में 150 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि करना और नए सैटेलाइट, सुपर कंप्यूटर और बहुत कुछ जोड़ना शामिल है। पांच साल का यह मिशन दो चरणों में लागू किया जाएगा।

मिशन का पहला चरण, जो मार्च 2026 तक चलेगा, ऑब्जरवेशन नेटवर्क का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करेगा। इसमें लगभग 70 डॉपलर रडार, हाई-परफॉरमेंस कंप्यूटर और 10 विंड प्रोफाइलर और 10 रेडियोमीटर स्थापित करना शामिल है।

दूसरे चरण में वेदर ऑब्जरवेशन क्षमताओं को और बढ़ाने के लिए सैटेलाइट और एयरक्राफ्ट्स को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

मिशन मौसम का उद्देश्य लघु से मध्यम अवधि के मौसम पूर्वानुमान की सटीकता में पाँच से 10 प्रतिशत तक सुधार करना और सभी प्रमुख मेट्रो शहरों में वायु गुणवत्ता की भविष्यवाणी को 10 प्रतिशत तक बढ़ाना है।

यह 10 से 15 दिनों के लीड टाइम के साथ पंचायत स्तर तक मौसम की भविष्यवाणी करने में सक्षम होगा और नाउकास्ट फ्रीक्वेंसी को तीन घंटे की बजाय एक घंटे किये जाएगा।  

नाउकास्ट बहुत ही अल्पकालिक पूर्वानुमान प्रदान करता है, आमतौर पर अगले कुछ घंटों के लिए। यह तेजी से बदलते मौसम की घटनाओं जैसे कि आंधी, भारी बारिश या बर्फबारी को ट्रैक करने के लिए उपयोगी है।

“मौसम प्रबंधन” (weather management) का अर्थ है क्लाउड सीडिंग का उपयोग करके मौसम की मिजाज को बदलना। बाद में बादलों पर उचित रसायनों का छिड़काव करना शामिल है ताकि उनकी जल-धारण क्षमता को बढ़ाया या घटाया जा सके। आकाशीय बिजली गिरने को नियंत्रित करने की योजनाएँ भी चल रही हैं।

मौसम विज्ञानियों का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन वे बादलों की विद्युत विशेषताओं को बदल पाएँगे ताकि आसमान से ज़मीन पर घातक रूप से गिरने वाली बिजली की कम मार पड़े।

इसके लिए, बढ़ते तापमान के संदर्भ में बादलों के भीतर होने वाली प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के मिशन के तहत अगले डेढ़ साल के भीतर भारतीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे  में एक “क्लाउड चैंबर” (cloud chamber) स्थापित किया जाएगा।

बढ़ते तापमान के कारण बादल लंबे और अधिक विद्युत रूप से सक्रिय हो जाते हैं, जबकि उनका हॉरिजॉन्टल  फैलाव कम हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप तेज़ आंधी और अधिक बार बिजली गिरने की घटनाएँ हो सकती हैं और वर्षा की गतिशीलता प्रभावित हो सकती है।

क्लाउड चैंबर IITM में एक प्रयोगशाला के अंदर कृत्रिम रूप से बादल बनाएगा और प्रयोग करेगा।

इससे वैज्ञानिकों को इन प्रक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझने और यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि किस प्रकार के बादलों को सीड किया जा सकता है। क्लाउड सीडिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बादलों में कुछ रसायन मिलाए जाते हैं ताकि वे बारिश उत्पन्न करें।  

क्लाउड चैंबर से प्राप्त जानकारी मौसम मॉडल के पैरामीटराइजेशन को बेहतर बनाने में भी मदद करेगी, जिससे इन मॉडल के स्वदेशीकरण का समर्थन होगा।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का लक्ष्य अगले पाँच वर्षों के भीतर कृत्रिम रूप से बारिश और ओलावृष्टि को बढ़ाना या दबाना भी है। उसके बाद, आकाशीय बिजली जैसी अन्य मौसम संबंधी घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

क्लाउड सीडिंग में संघनन को उत्प्रेरित करने के लिए हवा में पदार्थों को छिड़काव किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा होती है।

क्लाउड सीडिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले सबसे आम पदार्थों में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और शुष्क बर्फ/ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) शामिल हैं।

ये एजेंट न्यूक्लियस प्रदान करते हैं जिसके चारों ओर जल वाष्प संघनित हो सकता है, जिससे अंततः बारिश या बर्फ बनती है।

इस मौसम परिवर्तन तकनीक का उपयोग दुनिया के कई हिस्सों में किया गया है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी या सूखे की स्थिति है। क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल करने वाले कुछ देशों और राज्यों में अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया और यूएई शामिल हैं।

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