संपत्ति का अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई को निर्णय दिया कि अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किए बिना “सार्वजनिक उद्देश्य” के लिए निजी संपत्ति का अनिवार्य अधिग्रहण,  संवैधानिक नहीं कहा जायेगा।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि संपत्ति का अधिकार (right to property) एक संवैधानिक अधिकार के रूप में संरक्षित है और इसकी व्याख्या एक मानव अधिकार के रूप में भी की गई है। ऐसे में उचित प्रक्रियाओं का पालन किये बिना निजी संपत्ति का अधिग्रहण असंवैधानिक है।

इस फैसले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा गया, जिसमें कोलकाता नगर निगम द्वारा एक निजी भूमि के अधिग्रहण के बचाव में दायर अपील को खारिज कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि 44वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की श्रेणी से हटा दिया गया, लेकिन अनुच्छेद 300 A जोड़कर संपत्ति के संवैधानिक अधिकार को बरकरार रखा गया।  अनुच्छेद 300 A के अनुसार “कानून के अधिकार के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा”। इस तरह संपत्ति का अधिकार अनुच्छेद 300ए में ‘कानून के अधिकार’ का एक अभिन्न अंग है।

अदालत ने संपत्ति के अधिकार के मामले में निजी नागरिकों के लिए सात बुनियादी प्रक्रियात्मक अधिकार निर्धारित किए जो “अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार की वास्तविक स्थिति” को बयां करे हैं और सरकारों को किसी व्यक्ति की  निजी संपत्ति से वंचित करने से पहले इन सात सिद्धांतों का अनुपालन और सम्मान करना करना चाहिए।  ये सात बुनियादी प्रक्रियात्मक अधिकार हैं;

  • नोटिस देने का अधिकार या व्यक्ति को यह सूचित करने का राज्य का कर्तव्य कि वह उसकी संपत्ति अर्जित करना चाहता है;
  • अधिग्रहण के मामले में आपत्तियों को सुनने के लिए नागरिक का अधिकार या राज्य का कर्तव्य;
  • तर्कसंगत निर्णय लेने का नागरिक का अधिकार या संपत्ति अधिग्रहित करने के अपने निर्णय के बारे में व्यक्ति को सूचित करने का राज्य का कर्तव्य;
  • यह प्रदर्शित करना राज्य का कर्तव्य है कि अधिग्रहण विशेष रूप से सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है;
  • नागरिक के उचित मुआवजे प्राप्ति का अधिकार;
  • अधिग्रहण की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक और निर्धारित समयसीमा के भीतर संचालित करना राज्य का कर्तव्य है; और अंत में,
  • निर्णय या निष्कर्ष तक पहुँचने का अधिकार।
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