विरासत कर (Inheritance tax)

हाल ही में, कुछ राजनेताओं की टिप्पणियों के बाद भारत में ‘विरासत कर’ (Inheritance tax) पर बहस छिड़ गई है, हालांकि, यह कांसेप्ट भारत में नई नहीं है।

एस्टेट टैक्स (Estate tax) और विरासत कर दो प्रकार के कर हैं और दोनों का संबंध किसी व्यक्ति की मृत्यु से है। हालांकि, इन दोनों में अंतर है।

संपदा कर यानी एस्टेट टैक्स मृत व्यक्ति की मृत्यु की तारीख के अनुसार उसकी संपत्ति के कुल मूल्य पर लगाया जाता है, जबकि विरासत कर उन लाभार्थियों पर लगाया जाता है जिन्हें संपत्ति विरासत में मिलती है।

विरासत करों का प्राथमिक उद्देश्य सरकारी राजस्व को बढ़ाना और धन पुनर्वितरण को बढ़ावा देना है। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, फ्रांस और फिनलैंड सहित कई विकसित देशों ने 7% से 55% तक की कर दरों के साथ विरासत कर कानून लागू किया है।

हालाँकि, हाल के वर्षों में, संपदा या विरासत कर को खत्म करने का ट्रेंड देखा जा रहा है। टैक्स फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार, 2000 के बाद से, 11 देशों  ने विरासत कर को समाप्त कर दिया है।

भारत की संसद ने संपदा शुल्क ‘मृत्यु कर’ (Estate Duty ‘Death Tax) अधिनियम पारित किया था। अधिनियम के अनुसार, कृषि भूमि सहित चल और अचल संपत्ति के मूल मूल्य पर कर/शुल्क लगाया गया था, जो ऐसी संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति को दी गई थी।

संपदा शुल्क केवल विरासत में मिली संपत्तियों पर लागू होता था। इसे बाद में 1985 में राजीव गांधी सरकार द्वारा समाप्त कर दिया गया क्योंकि ऐसे करों के माध्यम से केंद्र को प्राप्त राजस्व  इसे वसूलने में प्रशासनिक प्रक्रिया के कारण होने वाली लागत से बहुत कम थी।

आज की तारीख में, विरासत में मिली संपत्ति पर कोई कर नहीं लगाया जाता है, चाहे वह वसीयत से हो या बिना वसीयत के उत्तराधिकार से।

संपत्ति शुल्क के समान, भारत में 1958 में पारित ‘उपहार कर’ (गिफ्ट टैक्स) अधिनियम भी था। इस अधिनियम में एक वित्तीय वर्ष में एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को दिए गए किसी भी ‘उपहार’ पर शुल्क लगाने की अनुमति दी गई थी।

एक उपहार को 1 अप्रैल, 1957 के बाद  एक व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से हस्तांतरित की गई किसी भी मौजूदा चल या अचल संपत्ति के रूप में परिभाषित किया गया था।

सम्पदा शुल्क लागू करते समय आने वाली समान बाधाओं के कारण, इस कर को समाप्त कर दिया गया था 1998 में सरकार द्वारा।

हालांकि, 2004 में, आयकर अधिनियम में संशोधन के जरिये उपहार कर को वित्त अधिनियम में फिर से पेश किया गया था। ₹50,000 से अधिक मूल्य का कोई भी नकद उपहार और ₹50,000 से अधिक मूल्य का कोई भी उपहार (यानी अचल संपत्ति) कर योग्य था। ।  

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