इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023
UNFPA (संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष)-भारत ने इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (IIPS) के सहयोग से “इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023” जारी की है।
यह रिपोर्ट भारत में बुजुर्गों की देखभाल से जुड़ी चुनौतियों, अवसरों और संस्थागत उपायों पर प्रकाश डालती है।
एजिंग क्या है?
सामान्य तौर पर, व्यक्ति के 60 या 65 वर्ष की आयु के पार करने को एजिंग या बुजुर्ग के रूप में परिभाषित किया जाता है (आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि यह मोटे तौर पर सेवानिवृत्ति की उम्र के साथ मेल खाता है)।
विश्व स्तर पर वृद्ध व्यक्तियों (60 वर्ष और उससे अधिक) की आबादी औसत जनसंख्या की तुलना में तेजी से बढ़ रही है।
जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण
एजिंग के लिए तीन प्रमुख जनसांख्यिकीय परिवर्तन जिम्मेदार हैं; प्रजनन दर में गिरावट, मृत्यु दर में कमी और बुजुर्ग लोगों के अधिक वर्ष तक जीवित रहना।
रिपोर्ट की मुख्य बातें
वर्ष 2050 तक देश में बुजुर्ग आबादी का प्रतिशत दोगुना होकर कुल आबादी का 20% से अधिक होने का अनुमान है।
वर्ष 2046 तक यह संभावना है कि देश में बुजुर्गों की आबादी बच्चों (0 से 15 वर्ष की आयु) की आबादी से अधिक हो जाएगी।
भारत में 40% से अधिक बुजुर्ग सबसे गरीब संपत्ति वर्ग में हैं, उनमें से लगभग 18.7% बिना आय के रहते हैं।
80+ वर्ष की आयु वाले लोगों की जनसंख्या 2022 और 2050 के बीच लगभग 279% की दर से बढ़ेगी, जिनमें “विधवा और अत्यधिक आश्रित बहुत वृद्ध महिलाओं की संख्या” अधिक होगी।
औसतन, 60 वर्ष की आयु में और 80 वर्ष की आयु में पुरुषों (feminisation) की तुलना में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा अधिक होती है। हालांकि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसमें भिन्नता देखी जाती है।
1991 के बाद से बुजुर्गों में लिंगानुपात (प्रति 1,000 पुरुषों पर महिलाएं) लगातार बढ़ रहा है, जबकि सामान्य जनसंख्या में यह अनुपात स्थिर है।
एजिंग की चुनौतियां
वृद्ध महिलाओं के विधवा होने, अकेले रहने, बिना किसी आय और अपनी संपत्ति कम होने और समर्थन के लिए पूरी तरह से परिवार पर निर्भर होने की आशंका अधिक होती है।
भारत की वृद्ध होती जनसंख्या के सामने प्रमुख चुनौतियाँ इस वृद्ध जनसंख्या का फेमिनाइज़ेशन और ग्रामीणीकरण हैं और नीतियों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए।
दक्षिणी क्षेत्र के अधिकांश राज्यों और हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे चुनिंदा उत्तरी राज्यों में 2021 में राष्ट्रीय औसत की तुलना में बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी अधिक है, यह अंतर 2036 तक बढ़ने की उम्मीद है।
बिहार और उत्तर प्रदेश सहित उच्च प्रजनन दर और जनसांख्यिकीय बदलाव में पिछड़ने की रिपोर्ट करने वाले राज्य भी 2021 और 2036 के बीच बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी में वृद्धि देख सकते हैं।
दक्षिणी और पश्चिमी भारत की तुलना में, मध्य और उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में युवाओं का असौत अधिक है।
दक्षिणी क्षेत्र में, वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात (15 से 59 वर्ष के बीच प्रति 100 लोगों पर बुजुर्ग लोगों की संख्या) राष्ट्रीय औसत 20 से अधिक था।
प्रमुख सिफारिशें
रिपोर्ट में आपदा-तैयारी योजनाओं में वृद्ध व्यक्तियों पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया गया है।
भारत में बुजुर्गों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर विश्वसनीय डेटा की कमी है और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और भारत की जनगणना के आगामी डेटा संग्रह कार्य में वृद्ध व्यक्तियों से संबंधित प्रासंगिक और उभरते मुद्दों पर प्रश्नों को शामिल किया जा सकता है।
सरकार को वृद्ध व्यक्तियों के लिए योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर काम करना चाहिए, सभी वृद्धाश्रमों को नियामक दायरे में लाना चाहिए और यथासंभव सीमा तक वृद्धावस्था की सुविधा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
सरकार को बुजुर्ग स्व-सहायता समूहों के गठन और संचालन को प्रोत्साहित करना चाहिए, और एक से अधिक-पीढ़ी वाले घरों में बुजुर्ग लोगों के रहने के महत्व पर जोर देना चाहिए।
जब बुजुर्ग लोग अपने-अपने परिवारों के साथ रहते हैं तो बेहतर देखभाल में रहते हैं, इसलिए सरकार को क्रेच या डे-केयर सुविधाओं जैसी अल्पकालिक देखभाल सुविधाएं बनाकर यथासंभव (घर पर) एजिंग को प्रोत्साहित करना चाहिए।