Gaia BH3: सबसे बड़े स्टेलर ब्लैक होल की खोज
खगोलविदों ने हमारी मिल्की वे आकाशगंगा में सूर्य से 33 गुना अधिक द्रव्यमान वाले सबसे बड़े स्टेलर ब्लैक होल “गैया बीएच3” (Gaia BH3) का पता लगाया है। यह पृथ्वी का दूसरा निकटतम ब्लैक होल भी है, जो पृथ्वी से केवल 2,000 प्रकाश वर्ष दूर है।
वैज्ञानिकों ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के गैया मिशन (Gaia mission) द्वारा एकत्र किए गए डेटा के नवीनतम भंडार में BH3 को देखा। Gaia mission अंतरिक्ष दूरबीन को एक अरब तारों का 3डी मानचित्र संकलित करने के उद्देश्य से 2013 में लॉन्च किया गया था।
बता दें कि जब सूर्य के द्रव्यमान से आठ गुना से अधिक द्रव्यमान वाले तारे का ईंधन खत्म हो जाता है, तो सुपरनोवा के रूप में इसमें विस्फोट हो जाता है और इसका कोर ढहकर एक स्टेलर ब्लैक होल बन जाता है।
अब तक, अध्ययनों से पता चला है कि आकाशगंगा में लगभग 50 संभावित या पुष्टि किए गए स्टेलर मास वाले ब्लैक होल हैं, लेकिन नासा के अनुसार अकेले हमारी आकाशगंगा मिल्कीवे में 100 मिलियन तक हो सकते हैं।
नए खोजे गए स्टेलर ब्लैक होल “गैया बीएच3” (Gaia BH3) ने सिग्नस एक्स-1 (Cygnus X-1) को पीछे छोड़ दिया है, जिसका द्रव्यमान सूर्य से 21 गुना बड़ा है। इस तरह Gaia BH3 आकाशगंगा में स्टेलर ओरिजिन का सबसे विशाल ब्लैक होल बन गया है।
ब्लैक होल
ब्लैक होल तारों की मृत्यु के बाद की अवस्था को कहते हैं। तारे अपने केंद्र में हाइड्रोजन का हीलियम में संलयन या फ्यूज़न से पैदा होने वाली ऊर्जा से चमकते हैं। दो बलों के संतुलन के कारण तारा स्थाई रूप से लम्बे समय तक चमकता रहता है। जहां उसके अपने पदार्थ का गुरुत्वाकर्षण उसे संकुचित कर छोटा बनाने का प्रयास करता है तो दूसरा केंद्र से बाहर निकलने वाला विकिरण जो उसे फैलाकर बड़ा करना चाहता है।
इसलिए जब तारे के केंद्रीय भाग में ईंधन समाप्त हो जाता है तो वह सिकुड़ने लगता है। सूर्य जैसे द्रव्यमान वाले तारे मृत्यु के बाद व्हाइट ड्वार्फ तारे बनते हैं।
सूर्य से कई गुना द्रव्यमान वाले बड़े तारों की जब मृत्यु होती है तो उनमें प्रचंड विस्फोट होता है जिसे सुपरनोवा विस्फोट कहते हैं। तारे का बहुत सारा पदार्थ ब्रह्मांड में चारों दिशाओं में फैल जाता है और केंद्र में एक सघन छोटा-सा पिंड बचा रहता है। उसे न्यूट्रॉन तारा कहते हैं।
इससे भी अधिक द्रव्यमान वाले तारों में सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे बीच के भाग का गुरुत्वाकर्षण द्वारा सिकुड़ना और भी आगे जारी रहता है। वह इतना सघन और इतने अधिक गुरुत्वाकर्षण वाला पिंड बन जाता है कि वहां से प्रकाश की किरण भी बाहर नहीं निकल सकती। ऐसे में वह अपना अस्तित्व नहीं बचा पाता। वह शून्य आकार धारण कर लेता है। तारे की इसी अवस्था को ब्लैक होल कहते हैं।
खगोलशास्त्री आम तौर पर ब्लैक होल को उनके द्रव्यमान के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित करते हैं: स्टेलर-मास, सुपरमैसिव, और मध्यवर्ती-द्रव्यमान।
जब सूर्य के द्रव्यमान से आठ गुना से अधिक द्रव्यमान वाले तारे का ईंधन खत्म हो जाता है, तो इसका कोर ढह जाता है, पलट जाता है और सुपरनोवा के रूप में विस्फोट हो जाता है।
सुपरमैसिव ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से सैकड़ों-हजारों से अरबों गुना अधिक होता है। सैजिटेरियसA* (Sgr A) का द्रव्यमान सूर्य से 4.2 मिलियन गुना अधिक है। Sgr A जैसे सुपरमैसिव ब्लैक होल बड़े तारों की मृत्यु से नहीं बनते, बल्कि उत्तरोत्तर बड़े और बड़े ब्लैक होल के विलय से बनते हैं।
हमारी आकाशगंगा सहित लगभग हर बड़ी आकाशगंगा के केंद्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल होता है।