विश्व के 60 से अधिक देशों ने “ग्लोबल कूलिंग प्लेज” पर हस्ताक्षर किये

विश्व के 60 से अधिक देशों ने कूलिंग सेक्टर (एयर कंडीशनिंग/रेफ्रिजरेशन) के जलवायु प्रभाव को कम करने की प्रतिबद्धताओं के साथ एक तथाकथित ‘ग्लोबल कूलिंग संकल्प’ (cooling pledge) पर हस्ताक्षर किए।

इसका उद्देश्य वर्ष 2050 तक जीवन रक्षक कूलिंग तक यूनिवर्सल एक्सेस प्रदान करना, ऊर्जा ग्रिडों पर दबाव कम करना तथा अरबों डॉलर की बचत करना है।

भारत ने इस संकल्प पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

यह प्लेज संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP28) 2023 के होस्ट के रूप में संयुक्त अरब अमीरात की एक पहल है।

सामूहिक वैश्विक लक्ष्यों के माध्यम से 2050 तक कूलिंग से होने वाले उत्सर्जन को आज से 68% तक कम करना,

2030 तक सस्टेनेबल कूलिंग तक एक्सेस में उल्लेखनीय वृद्धि करना और

नए एयर कंडीशनर की ग्लोबल एवरेज एफिशिएंसी में 50% की वृद्धि करना है।

दुबई में COP28 जलवायु वार्ता में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के नेतृत्व वाले कूल कोएलिशन (Cool Coalition) द्वारा प्रकाशित ग्लोबल कूलिंग वाच 2023 (Global Cooling Watch report) रिपोर्ट के अनुसार, कूलिंग एक्सेस की कमी के कारण 1 अरब से अधिक लोग अत्यधिक गर्मी का खतरा झेल रहे हैं – जिनमें से अधिकांश लोग अफ्रीका और एशिया में रहते हैं।

एयर कंडीशनिंग,जैसे पारंपरिक कूलिंग उपकरण जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख ड्राइवर है, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सात प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है।

यदि ठीक से प्रबंधन नहीं किया गया, तो इससे जुड़े उत्सर्जन के साथ, जगह की कूलिंग के लिए ऊर्जा की आवश्यकता 2050 तक तीन गुना हो जाएगी। संक्षेप में, मशीन के द्वारा जितना अधिक हम जगह को ठंडा रखने की कोशिश करते हैं, उतना अधिक हम पृथ्वी को गर्म करते हैं।

यदि विकास का मौजूदा ट्रेंड जारी रहता जारी रहता है, तो कूलिंग टूल्स जो आज कुल बिजली खपत के 20 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं – 2050 तक दोगुना से अधिक के लिए जिम्मेदार होंगे।

UNEP रिपोर्ट सस्टेनेबल एंड पैसिव कूलिंग, उच्च ऊर्जा-दक्षता मानकों और -हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) रेफ्रिजरेंट को फेज्ड तरीके से उपयोग समाप्त करने के लिए एक रोडमैप का फ्रेमवर्क तैयार की है। इन उपायों को लागू करने से 2050 तक उत्सर्जन में लगभग 3.8 बिलियन टन CO2 समतुल्य की कमी हो सकती है।

(The article was updated, as India has not signed the pledge, but it was wrongly mentioned that India has signed.)

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