नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023: प्रमुख विशेषताएं
संसद ने महिला आरक्षण से संबंधित संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 पारित किया, जिसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला महिला आरक्षण विधेयक (Women’s Reservation Bill) राज्यसभा में पारित हो गया है।
प्रमुख बिंदु
संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, या नारी शक्ति वंदन अधिनियम (Nari Shakti Vandan Adhiniyam), और इसके छह खंड राज्य सभा में 21 सितंबर को पारित हुआ। उपस्थित सभी 214 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मतदान किया।
लोकसभा ने 20 सितंबर 2023 को विधेयक पारित किया था। लोकसभा के 454 सदस्यों ने विधेयक का समर्थन किया था, जबकि केवल दो सदस्यों, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी और सैयद इम्तियाज जलील ने विधेयक का विरोध किया था।
महिला आरक्षण विधेयक नए संसद भवन में दोनों सदनों द्वारा पारित होने वाला पहला कानून है।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम: प्रमुख प्रावधान
यह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो इंडियंस के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण का भी प्रावधान करता है। विधेयक में अनुच्छेद 330A में एक क्लॉज जोड़ने के लिए कहा गया है कि लोकसभा में SC और ST के लिए आरक्षित सीटों में से एक-तिहाई सीटें इन श्रेणियों की महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी।
एक अन्य खंड में महिलाओं के लिए लोकसभा की कुल सीटों में से एक तिहाई ;प्रत्यक्ष चुनाव से भरने की बात कही गई है।
विधेयक में संविधान में नए अनुच्छेद – 3300A और 3320A – शामिल करने का प्रस्ताव है। ये नए प्रावधान क्रमशः लोकसभा और विधानसभाओं के लिए बदलाव पेश करेंगे।
विधेयक में अनुच्छेद 239 AA के क्लॉज 2 जोड़ने का प्रावधान है, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधान सभा में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।
यह आरक्षण अधिनियम के प्रभावी होने की तारीख से 15 वर्ष की अवधि के लिए होगा।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटों का आरक्षण अधिनियम लागू होने के बाद आयोजित होने वाली पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की कवायद के बाद प्रभावी होगा।
परिसीमन (Delimitation) के बारे में
परिसीमन का अर्थ है जनसंख्या में परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी देश में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने का कार्य या प्रक्रिया।
भारत में अंतिम परिसीमन प्रक्रिया 1976 में हुई थी और लोकसभा और राज्य विधानसभा क्षेत्रों की वर्तमान सीमाएं 2001 की जनगणना के आधार पर तय की गई थीं।
42वें संशोधन ने 2000 के बाद पहली जनगणना प्रकाशित होने तक इस परिसीमन अभ्यास को रोक दिया था । 1971 की जनगणना के आधार पर सीटों की संख्या स्थिर रखी गई है।
वर्ष 2002 में एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से, वर्ष 2026 के बाद पहली जनगणना होने तक परिसीमन पर रोक लगा दी गई थी।
अनुच्छेद 82 प्रत्येक जनगणना के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों (संख्या और सीमाओं) के पुन: समायोजन का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 170(3) विधान सभाओं की संरचना से संबंधित है।
संविधान के अनुच्छेद 243D में पंचायतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किये गए हैं ।