संसद ने न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता और साक्ष्य संहिता विधेयकों को पारित किया
संसद ने भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya (Second) Sanhita, 2023); भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha (Second) Sanhita, 2023) और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 (Bharatiya Sakshya (Second) Bill, 2023) पारित कर दिया।
इन विधेयकों को लोकसभा ने 20 दिसंबर को तथा राज्यसभा ने 21 दिसंबर को पारित किया।
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023: मुख्य विशेषताएं
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की जगह ली है। यह भारत की दंड विधि (क्रिमिनल लॉ) पर प्रमुख कानून है।
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता के तहत, 2023 में 358 धाराएं हैं। IPC में 511 धाराएं थीं।
सजा के तौर पर “सामुदायिक सेवा करना”: न्याय संहिता में सामुदायिक सेवा (कम्युनिटी सर्विस) को भी सजा के के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 की धारा 354(2) के तहत, केंद्र सरकार ने, देश में पहली बार, मानहानि के अपराध सहित “छोटे ” अपराधों (petty) के लिए सामुदायिक सेवा को एक दंड के रूप में जोड़ा गया है। इसके अलावा लोक सेवकों के अवैध रूप से व्यापार में शामिल होना; नोटिस के जवाब में उपस्थित नहीं होना; 5,000 रूपये से कम मूल्य की संपत्तियों की चोरी के लिए जिसकी भरपाई दोषी ने कर दी है; और नशे की हालत में किसी जगह पर अनाधिकार प्रवेश करना जैसे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा करने की सजा का प्रावधान है। गौरतलब है कि भारत में, किशोर न्याय अधिनियम एकमात्र अन्य क़ानून है जो सामुदायिक सेवा को सज़ा के रूप में निर्धारित करता है। किशोर न्याय अधिनियम अधिनियम की धारा 18(1)(c) में प्रावधान है कि यदि किशोर न्याय बोर्ड उचित समझे तो कानून का उल्लंघन करने वाले अपराधी को सामुदायिक सेवा से सम्मानित किया जा सकता है।
राजद्रोह अब अपराध नहीं: राजद्रोह अब अपराध नहीं है। इसके बजाय देशद्रोह का प्रावधान है। यह भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिए एक नया अपराध है।
आत्महत्या का प्रयास: भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 में एक नया प्रावधान पेश किया गया है जो “किसी भी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले को” अपराधी मानता है, और जेल की सजा का प्रावधान करता है।
आतंकवाद: भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाता है।
संगठित अपराध: पहली बार, संगठित अपराध (organised crime) से निपटने को सामान्य आपराधिक कानून के दायरे में लाया गया है।
मॉब लिंचिंग: भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम हत्याओं से जुड़े अपराधों को संहिताबद्ध किया गया है, और ऐसे मामलों के लिए जब पांच या अधिक व्यक्तियों की भीड़ नस्ल, जाति, समुदाय या व्यक्तिगत पंथ जैसे कारकों के आधार पर हत्या करती है तब आजीवन कारावास से लेकर मौत तक की सज़ा दी जा सकती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की जगह ली है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 में 531 धाराएं हैं जबकि CrPC में केवल 484 धाराएं थीं।
यह संहिता गिरफ्तारी, अभियोजन और जमानत की प्रक्रिया प्रदान करता है।
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 (BSB22)
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक, 2023 (BSB2) ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence act) की जगह ली है।
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) संहिता, 2023 में 170 धाराएं हैं. साक्ष्य अधिनियम में 167 धाराएं थीं।
यह अधिनियम भारतीय अदालतों में साक्ष्य (एविडेंस) के तौर पर स्वीकार किये जाने वाले तथ्यों/सामग्रियों का उल्लेख करती है। यह सभी सिविल और क्रिमिनल एक्ट पर लागू होती है।
इन कानूनों में FIR से लेकर केस डायरी, केस डायरी से लेकर आरोप पत्र और आरोप पत्र से लेकर फैसले तक की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाने का प्रावधान किया गया है।
कुछ नए प्रावधान
अब पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर ज़ीरो FIR करा सकता है और वो 24 घंटे में संबंधित पुलिस स्टेशन में अनिवार्य रूप से ट्रांसफर करनी होगी। इसके साथ ही हर जिले और थाने में पुलिस अधिकारी को पदनामित किया है जो गिरफ्तार लोगों की सूची बनाकर उनके संबंधियों को इन्फॉर्म करेगा।
घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की के लिए भी प्रावधान किया गया है। पहले 19 अपराधों में ही भगोड़ा घोषित कर सकते थे, अब 120 अपराधों में भगोड़ा घोषित करने का प्रावधान किया गया है।
ट्रायल इन एब्सेंशिया के तहत अब अपराधियों को सज़ा भी होगी और उनकी संपत्ति भी कुर्क होगी। एक तिहाई कारावास काट चुके अंडर ट्रायल कैदी के लिए जमानत का प्रोविजन किया गया है।
सजा माफी को भी तर्कसंगत बनाया गया है। अगर मृत्यु की सजा दी गयी है तो इसे कम करके आजीवन कारावास किया जा सकता है, सजा को इससे कम नहीं की जासकेगी। आजीवन कारावास की सजा दी गए है तो 7 साल की अवधि सज़ा भोगनी ही पड़ेगी और 7 वर्ष या उससे अधिक सजा है तो कम से कम 3 साल जेल में रहना पड़ेगा।