सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान हेतु दिशा-निर्देश जारी किये

सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और  विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए 9 नवंबर को दिशानिर्देश जारी किए। एक वकील द्वारा दायर याचिका पर कार्रवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने ये निर्देश दिए।

याचिका में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के तहत दोषी मौजूदा जन प्रतिनिधियों (सांसद और विधायक) सहित राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर निर्धारित छह साल के प्रतिबंध के बजाय आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।  

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 (Representation of People Act, 1951), मुख्य रूप से दो समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने, रिश्वतखोरी और अनुचित प्रभाव के साथ-साथ जमाखोरी, मुनाफाखोरी या खाद्य या दवाओं में मिलावट जैसे अपराधों के लिए दोषी पाए जाने पर सांसद और विधायक को अयोग्य ठहराने से संबंधित है।

सुप्रीम कोर्ट ने  ने देश भर के विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों की प्रगति की समीक्षा और निगरानी के लिए एक “विशेष पीठ” गठित करने का सुझाव दिया है।

ऐसे मामलों की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली विशेष पीठ या उनके द्वारा नामित पीठ द्वारा की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट यह भी कहा कि यदि आवश्यक हो तो ऐसे मामलों को नियमित अंतराल पर भी सुनवाई के लिए लिस्ट की जा सकती है।

विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए महाधिवक्ता या प्रासीक्यूटर को भी बुला सकती है।

अदालत ने कहा कि जन प्रतिनिधित्वों के खिलाफ ऐसे मामलों की सुनवाई को प्राथमिकता दी जाएगी जिनमें मौत या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।

इसके अलावा 5 साल या उससे अधिक की सजा वाले मामलों को भी प्राथमिकता दी जाएगी।  उच्च न्यायालय निचली अदालत के न्यायाधीशों को समय-समय पर रिपोर्ट भेजने के लिए भी कह सकते हैं। 

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