सीलबंद कवर प्रक्रियाएं प्राकृतिक न्याय और खुले न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड यानी मीडियावन चैनल मामले में निर्णय देते हुए 5 अप्रैल को कहा कि सीलबंद कवर न्यायशास्त्र (Sealed cover procedures) “प्राकृतिक न्याय और खुले न्याय” (natural justice and open justice) दोनों सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं।
प्रमुख तथ्य
सुप्रीम कोर्ट ने देश में अदालतों से कहा कि वे उन रिपोर्टों पर भरोसा करने की प्रथा को खत्म करें जो आमतौर पर केंद्र और राज्यों द्वारा गोपनीय रूप से प्रस्तुत की जाती हैं ताकि अदालतों को अंतिम निर्णय तक पहुंचने में मदद मिल सके।
सीलबंद कवर प्रक्रिया को अस्वीकार करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि इस तरह की प्रथा उस प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है जो सभी पक्षों को एक निष्पक्ष और उचित सुनवाई का अधिकार (right to a fair and reasonable hearing) प्रदान करता है।
खंडपीठ ने कहा कि गोपनीयता पक्षपात, भ्रष्टाचार और अन्य बुराइयों को जन्म देती है जो कानून के शासन पर आधारित शासन मॉडल के प्रतिकूल हैं।
मध्यमम ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड बनाम भारत संघ और अन्य मामले (Madhyamam Broadcasting Limited vs Union of India & Ors case) में, पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मीडिया वन चैनल पर केंद्र के प्रतिबंध को सही ठहराया गया था, जो केवल सीलबंद कवर में न्यायाधीशों को दिखाई गई कुछ तथ्यों पर आधारित था।
अदालत ने कहा कि न तो केंद्र सरकार और न ही उच्च न्यायालय ने चैनल को सुरक्षा मंजूरी देने से इनकार करने के कारण के सारांश का भी खुलासा नहीं किया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत संरक्षित प्रेस की स्वतंत्रता (freedom of press) का हवाला देते हुए देश की सुरक्षा के बहाने चैनल पर प्रतिबन्ध लगाना सही नहीं था क्योंकि उस चैनल को खुद का पक्ष रखने और बचाव कराने के लिए सामग्री उपलब्ध नहीं कराई गयी।
पीठ ने 1978 में “मेनका गांधी बनाम भारत संघ” के फैसले का हवाला भी दिया जो संवैधानिक प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर था और उसमें अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार का विस्तार किया गया था।