भारतीय वैज्ञानिकों ने “इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (EMIC)” तरंगों पर एक स्टडी प्रकाशित की है
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज्म के वैज्ञानिकों की एक टीम ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में स्थापित इंडक्शन कॉइल मैग्नेटोमीटर डेटा द्वारा 2011 और 2017 के बीच एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करके इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (Electromagnetic Ion Cyclotron: EMIC) तरंगों के जमीनी अवलोकन के कई पहलुओं को सामने लाया है।
यह अध्ययन निम्न कक्षाओं में चक्कर लगा रहेउपग्रहों पर विकिरण पट्टी (रेडिएशन बेल्ट) में विद्युत् आवेशित कणों के प्रभाव को समझने में सहायक बन सकता है।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (EMIC) तरंगों के बारे में
वैज्ञानिकों ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में ऐसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (Electromagnetic Ion Cyclotron: EMIC) तरंगों की पहचान की थी, जो प्लाज्मा तरंगों का ही एक रूप है।
ये तरंगें ऐसे किलर इलेक्ट्रॉनों [इलेक्ट्रॉनों की गति प्रकाश की गति के करीब होती हैं, जो पृथ्वी ग्रह की विकिरण पट्टी बेल्ट का निर्माण करती हैं] की बौछार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये बौछारें अंतरिक्ष में स्थित हमारी प्रौद्योगिकी/उपकरणों के लिए हानिकारक हैं।
हम जो ब्रह्मांड देखते हैं उसमें व्याप्त 99 प्रतिशत से अधिक पदार्थ में प्लाज्मा होता है जो पदार्थ की चौथी अवस्था है। हमारा सूर्य, सौर हवा, अंतरग्रहीय माध्यम, पृथ्वी के निकट क्षेत्र, मैग्नेटोस्फीयर (जिसमें पृथ्वी स्थित है और सूर्य के विकिरण के प्रकोप से सुरक्षित रहती है), और हमारे वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में प्लाज्मा शामिल है।
प्लाज्मा तरंगों का अध्ययन हमें उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्रदान करता है जो हमारे लिए दुर्गम होने के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में द्रव्यमान और ऊर्जा का परिवहन करते हैं, वे आवेशित कणों के साथ कैसे परस्पर संपर्क करते हुए पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र ( मैग्नेटोस्फीयर) की समग्र डायनामिक्स को नियंत्रित करते हैं।
ऐसी ही एक तरंग “इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन (EMIC)” है जो पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में देखी गई प्लाज़्मा तरंगों को पार करती है। वे विस्तृत ऊर्जा प्रसार क्षेत्र (रेंज) वाले इलेक्ट्रॉनों के साथ प्रतिध्वनित हो सकते हैं, और उन्हें हाई लैटिट्यूड वायुमंडल में प्रसारित कर सकते हैं।