सुप्रीम कोर्ट ने संरक्षित वनों के आसपास के इको-सेंसिटिव जोन (ESZ) पर आने निर्णय को संशोधित किया
सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 26 अप्रैल को देश भर में संरक्षित वनों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास न्यूनतम एक किलोमीटर के अनिवार्य पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (Eco-sensitive zones: ESZ) घोषित करने के अपने पूर्व के निर्णय को संशोधित किया है।
प्रमुख बिंदु
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने तर्क दिया कि ESZ पूरे देश में एक समान नहीं हो सकता है और इसे अलग-अलग संरक्षित क्षेत्रों में अलग अलग-अलग एरिया का होना चाहिए।
गौरतलब है कि 3 जून, 2022 को शीर्ष अदालत ने संरक्षित क्षेत्रों के लिए 1 किलोमीटर के बफर जोन को “शॉक एब्जॉर्बर” के रूप में घोषित किया था और इन्हें ESZ घोषित करना अनिवार्य कर दिया था।
जून 2022 के न्यायिक आदेश से जंगलों की परिधि में बेस सैकड़ों गांव इस क्षेत्र के दायरे में आ गए थे जिनकी दैनिक गतिविधियां प्रभावित होती। इस निर्णय में संशोधन की मांग केरल सरकार और केंद्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों ने की थी। इसी के पश्चात यह निर्णय आया है।
संशोधित निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने संशोधित आदेश में कहा कि जून 2022 का उसका आदेश उन संरक्षित क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा जहां राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य अंतर-राज्यीय सीमाओं पर स्थित हैं और कॉमन सीमाएं साझा करते हैं।
साथ ही यह आदेश पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के संबंध में मसौदा और अंतिम अधिसूचनाओं और मंत्रालय द्वारा प्राप्त ESZ प्रस्तावों के संबंध में भी लागू नहीं होगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य के भीतर और ऐसे राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से एक किलोमीटर के क्षेत्र में खनन की अनुमति नहीं होगी।
ESZ के बारे में
वर्ष 2002 की वन्यजीव संरक्षण रणनीति ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 (2) (v) तथा इसके नियम 5(viii) और (x) के तहत पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों या पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ESZ) के रूप में अधिसूचित होने के लिए राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी के भीतर भूमि की परिकल्पना की। ।
बता दें कि संरक्षित क्षेत्र भारत के 5.26% भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं जिनमें 108 राष्ट्रीय उद्यान और 564 वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। इन संरक्षित क्षेत्रों को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत अधिसूचित किया गया है।
राष्ट्रीय उद्यान जैसे ‘आरक्षित वनों’ में अधिकांश गतिविधियों प्रतिबन्ध हैं, जबकि वन्यजीव अभ्यारण्य में अपेक्षाकृत कम प्रतिबन्ध हैं।
इन संरक्षित क्षेत्रों के आसपास 1,11,000 वर्ग किमी से अधिक का क्षेत्र है – या देश की भूमि का 3.4% प्रतिशत है – जो वास्तव में पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (eco-sensitive zones: ESZ) के अंतर्गत आता है।
सरकारों ने 29 राज्यों और पांच केंद्र शासित प्रदेशों में 341 ESZ अधिसूचित किए हैं, जबकि अन्य 85 प्रोटेक्टेड एरिया ESZ अधिसूचना की प्रतीक्षा कर रहे हैं। साथ में, संरक्षित क्षेत्र और ESZ भारत के भूमि क्षेत्र का 8.66% कवर करते हैं।
ESZs संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अधिसूचित वनों में फैले हुए हैं, जिनमें से अधिकांश FRA के तहत ग्राम सभाओं के अधिकार क्षेत्र में भी आ सकते हैं।
किसी संरक्षित क्षेत्र की सीमा से ESZs की सीमा 0 से लेकर 45.82 किमी तक हो सकती है जैसे कि हिमाचल प्रदेश के पिन वैली नेशनल पार्क में ESZ 45.82 किलोमीटर तक विस्तृत है।
पंद्रह राज्यों में 10 किमी से अधिक के ESZ हैं।