Sacred Groves: सुप्रीम कोर्ट ने पवित्र उपवनों के संरक्षण का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर (2024) को केंद्र सरकार से देश भर में पवित्र उपवनों (sacred groves) के प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति बनाने को कहा। शीर्ष अदालत ने राजस्थान राज्य को सभी जिलों में पवित्र उपवनों (ओरण) का सर्वेक्षण और अधिसूचना पूरी करने का भी निर्देश दिया।

न्यायलय ने यह आदेश राजस्थान में लुप्त हो रहे वनों पर दायर एक याचिका पर दिया है।

पवित्र वन पेड़ों के वे क्षेत्र हैं  जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा उनके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए पारंपरिक रूप से संरक्षित किया जाता है। वे स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण में भी योगदान देते हैं। ये छोटे जंगल आमतौर पर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं।

न्यायालय ने पवित्र वनों के संरक्षण को पूरे समुदायों के सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों के साथ जोड़ा और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) को जैव विविधता के इन अनमोल स्रोतों की रक्षा के प्रयासों की अगुवाई करने को कहा।

न्यायालय ने कहा कि पवित्र वनों की पहचान की जानी चाहिए और जहां उचित हो, उनके संरक्षण को सुनिश्चित करने और अनधिकृत भूमि उपयोग परिवर्तनों को रोकने के लिए उन्हें सामुदायिक रिजर्व घोषित किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने केंद्र सरकार को याद दिलाया कि 1988 की राष्ट्रीय वन नीति, टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपद मामलों के माध्यम से शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप द्वारा समर्थित, समुदायों को इन वन क्षेत्रों की रक्षा और सुधार के लिए प्रथागत अधिकार के साथ प्रोत्साहित करती है, जिन पर वे अपनी जरूरतों के लिए निर्भर करते हैं।

वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 36-C राज्य सरकारों को जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और पारंपरिक या सांस्कृतिक संरक्षण मूल्यों और प्रथाओं की रक्षा के लिए किसी भी निजी या सामुदायिक भूमि को सामुदायिक रिजर्व के रूप में घोषित करने का अधिकार देती है।

सुप्रीम कोर्ट ने उन पारंपरिक समुदायों की पहचान करने का सुझाव दिया जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से पवित्र वनों को संरक्षित किया है और वन अधिकार अधिनियम की धारा 2 (A) के तहत क्षेत्रों को ‘सामुदायिक वन संसाधन’ (Community Forest Resource) का दर्जा देने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे पवित्र वनों को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की धारा 36-C के तहत कम्युनिटी रिजर्व (community reserves ) के रूप में घोषित करना चाहिए ताकि उनका संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके और अनधिकृत भूमि उपयोग परिवर्तनों को रोका जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे वनों को वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन (फारेस्ट) घोषित कर इन्हें वैधानिक दर्जा देना चाहिए।

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