‘संपत्ति का अधिकार’ संवैधानिक अधिकार और मानवाधिकार है-सुप्रीम कोर्ट

हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि संपत्ति का अधिकार अब भारतीय संविधान के तहत मूल अधिकार भले ही नहीं है, लेकिन यह एक संवैधानिक अधिकार और एक मान्यता प्राप्त मानवाधिकार बना हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि दो दशक पहले बेंगलुरु-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर (BMIC) परियोजना के लिए अपनी जमीन खोने वाले लोगों को अप्रैल 2019 के बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा दिया जाना चाहिए।

न्यायालय ने माना कि 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा संपत्ति का अधिकार, मूल अधिकार नहीं रहा। हालांकि, यह एक कल्याणकारी राज्य में एक मानव अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 300A  में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। न्यायालय ने बताया कि अनुच्छेद 300A अभी भी व्यक्तियों को कानूनी अधिकार के बिना उनकी संपत्ति से बेदखल होने से बचाता है और माना कि “किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजा दिए बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता”।

बता दें कि मूल संविधान ने अनुच्छेद 19(1)(f) के तहत भारत के सभी नागरिकों को “संपत्ति अर्जित करने, धारण करने और बेचने” का मूल अधिकार दिया।

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