राइट टू लाइफ और इक्वलिटी में “जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार” शामिल: सुप्रीम कोर्ट
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 14 और 21 के दायरे का विस्तार करते हुए इसमें “जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार” (right against the adverse effects of climate change) को भी शामिल करने का निर्णय दिया।
क्या है मामला?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पीठ बिजली ट्रांसमिशन लाइनों के कारण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को अपना हैबिटेट खोने से बचाने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
19 अप्रैल, 2021 को, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने लगभग 99,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था और ओवरहेड कम और उच्च वोल्टेज लाइनों को अंडरग्राउंड बिजली लाइनों में बदलने पर विचार करने को कहा था।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; बिजली मंत्रालय तथा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने बाद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपने निर्देशों में संशोधन करने का आग्रह किया।
उन्होंने बताया कि भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन में परिवर्तन और उत्सर्जन में कमी पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएं दी हुई हैं, और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के पर्यावास क्षेत्र में देश की सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
सरकार ने यह भी तर्क दिया कि हाई वोल्टेज बिजली लाइनों को भूमिगत करना तकनीकी रूप से संभव नहीं है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है जबकि अनुच्छेद 14 इंगित करता है कि सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों की समान सुरक्षा प्राप्त होगी। ये अनुच्छेद “स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार” के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
अदालत ने यह भी माना कि स्वच्छ पर्यावरण के बिना “जीवन का अधिकार” (राइट तो लाइफ) पूरी तरह से साकार नहीं होता है।
“राइट तो हेल्थ” अनुच्छेद 21 के तहत “राइट टू लाइफ” का एक हिस्सा है। यह अधिकार वायु प्रदूषण, वेक्टर जनित बीमारियों में बदलाव, बढ़ते तापमान, सूखा, फसल नष्ट होने के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी, तूफान और बाढ़. जैसे कारकों के कारण प्रभावित होता है।
वंचित समुदायों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने या इसके प्रभावों से निपटने में असमर्थता जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के साथ-साथ समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करती है।
अदालत ने बताया कि भारत का लक्ष्य 2022 तक 175 गीगावॉट (गीगावाट) की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता (बड़ी पनबिजली को छोड़कर) हासिल करना है। यह एक ऐसा लक्ष्य है जो स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, और भविष्य का लक्ष्य 2030.तक 450 गीगावॉट क्षमता स्थापित करने का है।
संवैधानिक प्रावधान और पर्यावरण
संविधान के अनुच्छेद 48A में प्रावधान है कि राज्य पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।
मौलिक कर्तव्य: अनुच्छेद 51A (g) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वन, झील, नदी और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन करना और प्राणि मात्र के प्रति दया भाव रखे।