सिक्किम में दुर्लभ तिब्बती भूरा भालू देखे जाने की पुष्टि हुई है
भारत में पहली बार दुर्लभ तिब्बती भूरे भालू (Tibetan brown bear) को उत्तरी सिक्किम में देखे जाने की पुष्टि की गयी है। इसे सिक्किम वन विभाग और WWF-इंडिया द्वारा स्थापित कैमरा ट्रैप में रिकॉर्ड किया गया था।
इस प्रजाति को वैज्ञानिक रूप से उर्सस आर्कटोस प्रुइनोसस (Ursus arctos pruinosus) के नाम से जाना जाता है। इसे तिब्बती ब्लू भालू के नाम से भी जाना जाता है।
यह दुनिया में भालुओं की सबसे दुर्लभ उप-प्रजातियों में से एक है। यह उप-प्रजाति तिब्बती पठार की प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए अनुकूलित हो गई है और वाइल्ड में शायद ही कभी देखी जाती है।
नेपाल, भूटान और तिब्बती पठार के कुछ रिकॉर्ड इसके देखे जाने की पुष्टि करते हैं, जिनमें से नवीनतम सिक्किम में देखा गया है।
यह प्रजाति दिखने में आम तौर पर पाए जाने वाले हिमालयी काले भालू (Himalayan Black Bear) से अलग है। तिब्बती भूरे भालू सर्वाहारी है और इसके आहार में आम तौर पर मर्मोट और अल्पाइन वनस्पति शामिल होती है।
यह दुर्लभ भालू देखने में, हैबिटेट और व्यवहार के मामले में आम तौर पर पाए जाने वाले हिमालयी काले भालू से बहुत अलग है।
यह 4000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले अल्पाइन जंगलों, घास के मैदानों और स्टेपी में निवास करता है। इसके अलावा, यह मानव संपर्क से बहुत कतराता है और इसलिए बहुत कम ही देखा जाता है।
इसके विपरीत, हिमालयी काले भालू की छाती पर एक विशिष्ट ‘V’ आकार का सफेद निशान होता है, यह 4000 मीटर से नीचे समशीतोष्ण जंगलों में रहता है, और मनुष्यों के साथ लगातार संपर्क में आता है जिसके परिणामस्वरूप अक्सर संघर्ष होता है।
कैमरा ट्रैप ने दिसंबर 2023 में मंगन जिले में भालू को कंधों से छाती तक चौड़ा तथा पीले रंग के स्कार्फ जैसे कॉलर के साथ कैप्चर किया। भूरे भालू की सूंघने की क्षमता उसकी सुनने और देखने की क्षमता से कहीं अधिक तीव्र होती है।
तिब्बती भूरे भालू की प्रजाति को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत सर्वोच्च संरक्षण का दर्जा दिया गया है और अनुसूची-I के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
एंडेजर्ड स्पीशीज के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) ने भी इसे संरक्षित प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है।