अयोध्या मंदिर में श्री रामलला की मूर्ति तीन अरब साल पुरानी चट्टान से बनाई गई है
मैसूर के मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई बाल अवस्था में राम की मूर्ति, जो अयोध्या राम मंदिर के गर्भगृह को सुशोभित करती है, तीन अरब साल पुरानी चट्टान से तराशी गई है।
यह बात मैसूर विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान विभाग के यूजीसी-एमेरिटस प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) सी. श्रीकांतप्पा ने “द हिंदू” से कही। उन्होंने कहा कि, भूवैज्ञानिक रूप से मैसूरु के आसपास की चट्टानें आर्कियन धारवाड़ क्रेटन (Archaen Dharwar craton) का हिस्सा हैं और मैसूरु के आसपास दिखने वाली बेसमेंट चट्टानें संरचना में सियालिक (sialic) हैं यानी सिलिका और एलुमिनियम, जिन्हें प्रायद्वीपीय नीस (Peninsular gneiss) कहा जाता है। नीस रूपांतरित चट्टानें हैं।
नाइसिक चट्टानों में जिक्रोन खंडों के U-Pb (यूरेनियम और लेड) आइसोटोपिक डेटिंग से पता चलता है कि ये तीन अरब वर्ष पुरानी हैं।
इससे यह पता चलता है कि वे दक्षिणी भारत में स्पष्ट दिखने वाली सबसे पुरानी चट्टानें हैं। ये चट्टानें मैसूर के दक्षिण पश्चिम की ओर सरगुर शहर के आसपास भी मिलती हैं और इसलिए इसका नाम सरगुर शिस्ट बेल्ट (Sargur Schist Belt) रखा गया है।
यह पाया गया है कि श्री राम लला की मूर्ति को तराशने के लिए जिस चट्टान का उपयोग किया गया है वह दक्षिण भारत की सबसे पुरानी चट्टान है। यह चट्टान मैसूरु जिले के गुग्गेगौड़ानपुरा में एक सक्रिय खदान से ली गई है और इसी तरह की चट्टानें भारत के अन्य हिस्सों में भी पाई जाती हैं।