राज्य सभा चुनाव प्रक्रिया
फरवरी 2024 में, भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन ने सत्तारूढ़ कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हराकर हिमाचल प्रदेश से एकमात्र राज्यसभा सीट जीती। मुकाबला 34-34 वोटों से बराबरी पर रहने के बाद विजेता का फैसला ड्रा से किया गया।
लॉटरी द्वारा विजेता की घोषणा
जीत का फैसला चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 75 के अनुसार लॉटरी निकालने के प्रावधान के तहत किया गया। नियम 75 वोटों की गिनती से संबंधित है जहां केवल एक सीट भरी जानी है।
नियम की उपधारा 4 में कहा गया है कि यदि दो या दो से अधिक उम्मीदवारों को समान संख्या में वोट मिले हैं, तो “रिटर्निंग अधिकारी लॉटरी द्वारा निर्णय लेगा कि उनमें से किसे एक्सक्लूड किया जाएगा।”
बॉक्स से एक पर्ची निकाली जाती है, जिस उम्मीदवार का नाम पर्ची में होता है उसे एक्सक्लूड कर दिया जाता है यानी वह पराजित हो जाता है। वहीं जिस नाम वाली पर्ची बॉक्स में ही पड़ी रह जाती है वह विजेता घोषित होता है।
राज्य सभा चुनाव प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार, राज्यसभा के लिए प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों को उनकी विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।
राज्यसभा के लिए मतदान की आवश्यकता तभी होती है जब उम्मीदवारों की संख्या रिक्तियों की संख्या से अधिक हो। दरअसल, 1998 तक राज्यसभा चुनावों का नतीजा आम तौर पर पहले से तय होता था। विधानसभा में अपनी संख्या के अनुसार विभिन्न दलों द्वारा नामांकित उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो जाते थे।
हालाँकि, जून 1998 में महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग हुई जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। विधायकों को इस तरह की क्रॉस-वोटिंग से रोकने के लिए, 2003 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में एक संशोधन किया गया था।
अधिनियम की धारा 59 में यह प्रावधान करने के लिए संशोधन किया गया था कि राज्यसभा के चुनावों में मतदान एक ओपन बैलेट सिस्टम से होगा, जहां. राजनीतिक दलों के विधायकों को अपना मतपत्र अपनी पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाना होगा। अधिकृत एजेंट को मतपत्र न दिखाने या किसी अन्य को न दिखाने पर वोट अयोग्य यानी इनवैलिड हो जाता है। निर्दलीय विधायकों को अपने मतपत्र किसी को दिखाने की जरुरत नहीं पड़ती है।
दसवीं अनुसूची के प्रावधान राज्यसभा चुनाव पर लागू नहीं
52वें संवैधानिक संशोधन ने 1985 में दसवीं अनुसूची के माध्यम से ‘दल-बदल विरोधी’ कानून पेश किया। इस अनुसूची के अनुसार, संसद या राज्य विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य जो स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है या उनके निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है तब सदन की उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
मतदान के संबंध में यह निर्देश किसी पार्टी के ‘व्हिप’ द्वारा जारी किया जाता है। हालाँकि, राज्यसभा के चुनावों को विधान सभा के भीतर की कार्यवाही के रूप में नहीं माना जाता है।
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए जुलाई 2017 में एक स्पष्टीकरण जारी किया था। इसमें कहा गया था कि पार्टी के निर्देश के खिलाफ मतदान के संबंध में दसवीं अनुसूची के प्रावधान राज्यसभा चुनाव के लिए लागू नहीं होंगे।
इसके अलावा, राजनीतिक दल ऐसे चुनावों के लिए अपने सदस्यों को कोई ‘व्हिप’ जारी नहीं कर सकते।
कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ (2006) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यसभा चुनावों के लिए ओपन बैलेट की प्रणाली को बरकरार रखा। इसने तर्क दिया कि यदि गोपनीयता भ्रष्टाचार का स्रोत बन जाती है, तो पारदर्शिता उसे दूर करने की क्षमता रखती है। हालांकि, उसी मामले में अदालत ने माना कि किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित विधायक को अपनी पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करने पर दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा। वह अधिक से अधिक अपने राजनीतिक दल की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने रवि एस. नाइक और संजय बांदेकर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1994) मामले में भी माना कि दसवीं अनुसूची के तहत स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ना उस पार्टी से औपचारिक रूप से इस्तीफा देने का पर्याय नहीं है, जिसका वह सदस्य है।