राजस्थान में ओरण को डीम्ड फॉरेस्ट घोषित करने का विरोध

राजस्थान में कुछ ग्रामीण समुदाय ओरण भूमि/oran (पवित्र वन) को डीम्ड वन (Deemed forests) के रूप में वर्गीकृत करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।

ओरण और इसके पारिस्थितिक क्षेत्रों को डीम्ड फॉरेस्ट घोषित करने की अधिसूचना 1 फरवरी, 2024 को जारी की गई थी।

अधिसूचना में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार वन भूमि के रूप में ओरण, देव-वन और रूंधों को डीम्ड फॉरेस्ट का दर्जा दिया जाएगा।

ग्रामीण समुदायों का मानना है कि एक बार ओरण भूमि को वन घोषित कर दिए जाने के बाद, वे वन उपज नहीं प्राप्त कर सकेंगे और वन क्षेत्र में पशुओं और भेड़ों को नहीं चरा सकेंगे।

यहां कई मंदिर, पूजा स्थल और अलग-अलग स्वामित्व के तहत पंजीकृत भूमि हैं। आजादी से पहले यहां लगभग हर एक गांव में स्थानीय देवी-देवताओं के नाम पर ओरण के लिए जमीन छोड़ी गई थी। इन ओरणों में ग्रामीण ना तो पेड़ काटते हैं, ना ही अपने इस्तेमाल के लिए कुछ लेते हैं। इनमें जो कुछ पैदा होता है, वह पशुओं के लिए ही है।

इस भूमि का उपयोग हो रहा है। इसलिए, ओरण भूमि 1996 के सुप्रीम कोर्ट के गोदावर्मन फैसले के आधार पर डीम्ड जंगल की परिभाषा के दायरे में नहीं आती।

ग्रामीणों ने बताया कि ओरण भूमि मुख्यतया रेगिस्तानी क्षेत्र में आती है इसलिए जंगल का शब्दकोषीय अर्थ (डिक्शनरी मीनिंग) इस पर लागू नहीं होता।

डीम्ड वन वे क्षेत्र हैं जिनमें वनों की विशेषताएं तो हैं लेकिन वे न तो वन के रूप में अधिसूचित हैं और न ही सरकारी या राजस्व रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज हैं।

ऐसी भूमि को और अधिक क्षरण होने से बचाने के लिए, टी.एन. गोदावर्मन मामले (TN Godavarman case) में सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर, 1996 के एक आदेश द्वारा राज्य सरकारों को ऐसी भूमि की पहचान करने का निर्देश दिया और कहा कि डीम्ड वनों सहित सभी प्रकार के ‘वन’ को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980. धारा 2 के तहत कवर किया जाएगा।

धारा 2 के तहत प्रावधान केंद्र सरकार की अनुमति के बिना ऐसी वन भूमि पर खनन, वनों की कटाई, उत्खनन या इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के निर्माण जैसी गैर-वानिकी गतिविधि पर रोक लगाते हैं।

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