राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कैंसर के इलाज के लिए पहली स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी की शुरुआत की

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 4 अप्रैल को कैंसर के इलाज के लिए भारत की पहली स्वदेशी रूप से विकसित CAR T सेल थेरेपी लॉन्च की। इसे इम्यूनोएक्ट के सहयोग से IIT बॉम्बे, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ने विकसित किया।

जीन-आधारित यह थेरेपी विभिन्न प्रकार के कैंसर को ठीक करने में मदद करेगी। यह NexCAR19 CAR T-सेल थेरेपी देश की पहली ‘मेड इन इंडिया’ CAR T-सेल थेरेपी है, जिससे कैंसर के इलाज की लागत में काफी कमी आएगी।

NexCAR19 को भारत के बाहर उपलब्ध कीमत के लगभग दसवें हिस्से पर लॉन्च किया गया है। विदेश में इलाज का खर्च लगभग ₹4 करोड़ है।

T कोशिकाएं – जो इम्यून रिस्पांस को मैनेज करने में मदद करती हैं और रोगजनकों से संक्रमित कोशिकाओं को सीधे मारती हैं – CAR-T-सेल थेरेपी के आधार हैं।

T-कोशिकाएं श्वेत रक्त कोशिकाएं हैं जो पूरे शरीर में बीमारी और संक्रमण का पता लगाती हैं और उनसे लड़ती हैं। प्रत्येक T-कोशिका में एक रिसेप्टर होता है जो एंटीजन (प्रतिरक्षा प्रणाली को बाधित करने वाला) को पहचान सकता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी (बैक्टीरिया या वायरस) या शरीर के भीतर के असामान्य एंटीजन को पहचानती है, तो यह उन्हें नष्ट करने का काम कर सकती है।

लेकिन कैंसर कोशिकाओं में कभी-कभी ऐसे एंटीजन होते हैं जिन्हें शरीर नहीं समझ पाता कि ये खतरनाक हैं। परिणामस्वरूप, हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम कैंसर कोशिकाओं से लड़ने के लिए T-कोशिकाओं को लड़ने के लिए नहीं भेज सकती है। अर्थात, ऐसी स्थति में T-कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम नहीं हो सकती हैं।

काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर T-कोशिकाएं ऐसी कोशिकाएं हैं जिन्हें प्रयोगशाला में आनुवंशिक रूप से इंजीनियर (बदलाव) किया जाता है। इससे T-कोशिकाओं के पास एक नया रिसेप्टर होता है जिससे वे कैंसर कोशिकाओं से जुड़ सकते हैं और उन्हें मार सकते हैं।

वर्तमान में उपलब्ध CAR-T–सेल उपचार प्रत्येक व्यक्तिगत रोगी के लिए अलग बनाई जाती हैं

इन्हें रोगी से T कोशिकाओं को निकल करके और उनकी सतह पर काइमरिक एंटीजन रिसेप्टर्स या CAR नामक प्रोटीन का उत्पादन करने के लिए प्रयोगशाला में पुन: इंजीनियरिंग करके बनाया जाता है।

प्रयोगशाला में संशोधित T- कोशिकाओं को लाखों में “विस्तारित” करने के बाद, उन्हें फिर से रोगी के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। यदि सब कुछ योजना के अनुसार होता है, तो CAR-T कोशिकाएं रोगी के शरीर में बढ़ती रहेंगी और, अपने इंजीनियर रिसेप्टर के मार्गदर्शन से, अपनी सतहों पर टारगेट एंटीजन को आश्रय देने वाली किसी भी कैंसर कोशिकाओं की पहचान कर उन्हें मार देंगी।

ये रिसेप्टर्स “सिंथेटिक मॉलिक्यूल होते हैं, वे कुदरती रूप से मौजूद नहीं होते हैं।

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