क्या है बालियात्रा (Baliyatra)?
17वें जी20 शिखर सम्मेलन 2022 के मौके पर बाली में प्रवासी भारतीयों को अपने संबोधन में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कटक में महानदी के तट पर वार्षिक बालियात्रा (Baliyatra) फेस्टिवल का उल्लेख किया, जो भारत और इंडोनेशिया के बीच प्राचीन व्यापार संबंधों का जश्न मनाती है।
- इस वर्ष की बालीयात्रा, जो 17 नवंबर को संपन्न हुई, को सुंदर कागज की मूर्तियों के निर्माण के लिए ओरिगेमी की प्रभावशाली उपलब्धि हासिल करने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी जगह मिली।
बाली यात्रा के बारे में
- बाली यात्रा, देश के सबसे बड़े मुक्ताकाश (ओपन-एयर) मेलों में से एक है, जो हर साल प्राचीन कलिंग (आज का ओडिशा) और बाली तथा जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बर्मा (म्यांमार) और सीलोन (श्रीलंका) जैसे अन्य दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रों के बीच 2,000 साल पुराने समुद्री और सांस्कृतिक संबंधों का उत्सव मनाने के लिए आयोजित किया जाता है।
- बता दें कि बाली यात्रा पूरे ओडिशा राज्य में मनाया जाता है। कटक में, कार्तिक पूर्णिमा के दिन (कार्तिक महीने, अर्थात अक्टूबर-नवंबर, की पूर्णिमा) से शुरू होकर एक सप्ताह तक चलने वाला कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
- हर साल कार्तिक पूर्णिमा उस दिन को चिन्हित करती है जिस दिन समुद्री व्यापारी इंडोनेशियाई द्वीपों के लिए रवाना हुआ करते थे। बाली में मनाया जाने वाला ‘मसकपन के तुकड़’ त्योहार ओडिशा में बाली यात्रा उत्सव के समान है। दोनों त्योहार अपने-अपने समुद्री पूर्वजों की याद में मनाए जाते हैं।
- कलिंग साम्राज्य अपने शानदार समुद्री इतिहास के लिए जाना जाता है। कलिंग की भौगोलिक स्थिति के कारण, इस क्षेत्र में चौथी और पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व से ही बंदरगाहों का निर्माण होने लगा था। ताम्रलिप्ति, माणिकपटना, चेलिटालो, पलूर, और पिथुंड जैसे कुछ प्रसिद्ध बंदरगाहों द्वारा भारत समुद्र के रास्ते अन्य देशों से जुड़ सका।
- जल्द ही, कलिंग वासियों ने श्रीलंका, जावा, बोर्नियो, सुमात्रा, बाली और बर्मा के साथ व्यापारिक संबंध बना लिए। बाली उन चार द्वीपों का हिस्सा था जिसे सामूहिक रूप से सुवर्णद्वीप कहा जाता था, जिसे आज इंडोनेशिया के रूप में जाना जाता है।
- कलिंग वासियों ने ‘बोइता’ नाम की बड़ी नावों का निर्माण किया और इनकी मदद से उन्होंने इंडोनेशियाई द्वीपों के साथ व्यापार किया।
- दिलचस्प बात यह है कि कभी बंगाल की खाड़ी को कलिंग सागर के रूप में जाना जाता था क्योंकि यह कलिंग के इन जहाजों से भरी होती थी।
- समुद्री मार्गों पर कलिंग वासियों के प्रभुत्व को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि कालिदास ने अपनी ‘रघुवंश’ नामक रचना में कलिंग के राजा को ‘समुद्र का देवता’ (महोदधिपति) कहा है।