कर्नाटक के चिक्कमगलुरु में वर्षों बाद खिला नीलकुरिंजी फूल

कई वर्षों में एक बार खिलने वाले नीलकुरिंजी (Neelakurinji) के फूलों ने  कर्नाटक के चिक्कमगलुरु (Chikkamagaluru) में हिल स्टेशनों के भू-खण्डों  को बैंगनी-नीले रंग में बदल दिया है। यह हर दिन बड़ी संख्या में  आगंतुकों को आकर्षित कर रहा है।

चिक्कमगलुरु में 16 साल बाद नीलकुरिंजी फूल खिले हैं, हालांकि केरल के मुन्नार में यह अमूमन 12 वर्षों पर खिलता है।  

20 दिनों से अधिक समय से, हजारों लोगों ने चिक्कमगलुरु  पहाड़ियों की चंद्रद्रोण रेंज में सीतालययन गिरि, मुल्लाय्यानगिरी और बाबाबुदनगिरी (Seethalayyana Giri, Mullayyanagiri, and Bababudangiri) का दौरा किया है।

नीलकुरिंजी, एक झाड़ी (shrub) है और यह पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाया जाता है।

साइट का दौरा करने वाले टैक्सोनोमिस्ट्स ने इसे स्ट्रोबिलेंथेस सेसिलिस (Strobilanthes sessilis) के रूप में पहचाना। मुन्नार में सामान्य रूप से खिलने वाला नीलकुरिंजी  फूल का जैव वैज्ञानिक नाम स्ट्रोबिलेंथेस कुंथियाना (Strobilanthes kunthiana) है।

यह झाड़ी पश्चिमी घाट की देशी यानी एंडेमिक प्रजाति है। इस पौधे की कई किस्में हैं और कुछ किस्में कर्नाटक में देखी जाती हैं।

नीलकुरिंजी में ‘नील’ का शाब्दिक अर्थ ‘नीला’ है और यह फूल के रंग का द्योतक है।  वहीं ‘कुरिंजी’  इसे क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा दिया गया नाम है।

मुन्नार (केरल) में, कोविलूर, कदावरी, राजमाला और एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान में यह खिलता है।  

मुन्नार में यह अंतिम बार 2018 में खिला था। एराविकुलम मेम संयोग से संकटापन्न  नीलगिरि तहर बकरियां भी पाईं जाती हैं।  

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