अंतर्राज्यीय गिरफ़्तारी पर कानून क्या कहता है ? 

6 मई, 2022 को पंजाब पुलिस द्वारा भाजपा नेता तेजिंदरपाल सिंह बग्गा की गिरफ्तारी और फिर दिल्ली पुलिस द्वारा बग्गा को पकड़ने वाली पंजाब पुलिस टीम के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने के बाद संकट पैदा हो गया था। यदि कोई अपराध सात साल के लिए दंडनीय है, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) निर्धारित करती है कि गिरफ्तारी केवल तभी की जानी चाहिए जब आरोपी के फरार होने, या गवाहों को धमकाने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की संभावना हो जिसे वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट के अर्नेश कुमार मामले के निर्णय में भी दोहराया गया था। सात साल तक की सजा से जुड़े अपराधों में पुलिस गिरफ्तारी का चरम कदम तभी उठा सकती है जब यहआवश्यक हो और आवेदक जांच में सहयोग न कर रहा हो। जांच में सहयोग करने के लिए पहले आवेदक को तलब किया जाना चाहिए। यदि आवेदक जांच में सहयोग करते हैं तो उनकी गिरफ्तारी का कारण नहीं बनना चाहिए।

CrPC Article 79: जब किसी व्यक्ति को वारंट के अनुसरण में गिरफ्तार किया जा रहा है, तो CrPC की धारा 79 में गिरफ्तारी की प्रक्रिया का पालन किया जाना होता है, यदि गिरफ्तारी एक अलग क्षेत्राधिकार में हो रही है जहां से वारंट जारी किया गया था। यह प्रक्रिया, जिसमें कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के प्रभारी पुलिस अधिकारी से अनुमोदन प्राप्त करना शामिल है, जिसके अधिकार क्षेत्र में गिरफ्तारी की गई है। यह प्रावधान अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी पर भी लागू होगी होती है।

CrPC Article 48: जहां तक वारंट के बिना गिरफ्तारी का संबंध है, किसी अन्य राज्य में किसी आरोपी को गिरफ्तार करने की पुलिस की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता CrPC की धारा 48 पुलिस को ऐसी शक्तियां देती है, लेकिन प्रक्रिया परिभाषित नहीं है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(2) कहता है: “हर व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है और हिरासत में रखा गया है, उसे गिरफ्तारी के चौबीस घंटे की अवधि के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा, जिसमें गिरफ्तारी की जगह से यात्रा के लिए लगा आवश्यक समय शामिल नहीं है। मजिस्ट्रेट की अदालत में गिरफ्तारी के लिए, और ऐसे किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के अधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक हिरासत में नहीं लिया जा सकता।

वर्ष 2019 में, संदीप कुमार बनाम राज्य मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा, ‘दूसरे राज्य का दौरा करने से पहले, पुलिस अधिकारी को उस स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में वह जांच का संचालन करता है। उसे अपने साथ शिकायत/एफआईआर और अन्य दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियां उस राज्य की भाषा में ले जानी चाहिए जहां से उसे गिरफ्फ्तार किया जाना है।’

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