NCPCR ने नाबालिगों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने के प्रारंभिक आकलन पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act) के तहत कुछ नाबालिगों (minors) को विशेष मामलों में वयस्कों (adults) के रूप में कानून के तहत मुकदमा चलाने के प्रारंभिक आकलन पर मसौदा दिशानिर्देश जारी किया है।

विशेषज्ञों के परामर्श के बाद तैयार किए गए 12-पेज के मसौदा दिशानिर्देश 20 जनवरी तक आम जनता से इनपुट और टिप्पणियों के लिए खुले हैं।

क्या है कानून?

बता दें कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत पहले, 18 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को कानून द्वारा नाबालिग माना जाता था, लेकिन 2015 में एक संशोधन के माध्यम से, कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने के लिए J J एक्ट में एक प्रावधान जोड़ा गया। इसके तहत जघन्य अपराधों (heinous offences) के मामले में 16-18 वर्ष की आयु के बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है।

अधिनियम की धारा 15 (1) में कहा गया है कि किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) यह निर्धारित करने के लिए एक प्रारंभिक मूल्यांकन (preliminary assessment) करेगा कि ऐसे बच्चे पर वयस्क या नाबालिग के रूप में मुकदमा चलाया जाए या नहीं।

अधिनियम निर्देश देता है कि बोर्ड कथित अपराध करने वाले बच्चे की मानसिक और शारीरिक क्षमता, अपराध के दुष्परिणामों को समझने की क्षमता और जिन परिस्थितियों में अपराध किया गया था, उन पर विचार करेगा।

इसमें कहा गया है कि बोर्ड अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं या अन्य विशेषज्ञों की सहायता ले सकता है।

अधिनियम में एक डिस्क्लेमर भी कि अस्सेस्मेंट कोई ट्रायल नहीं है, बल्कि केवल कथित अपराध के दुष्परिणामों को समझने के लिए बच्चे की क्षमता का आकलन करना है।

मूल्यांकन के बाद, बोर्ड यह कहते हुए एक आदेश पारित कर सकता है कि उक्त बच्चे पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने और मामले को संबंधित क्षेत्राधिकार वाले बच्चों की अदालत में स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।

यदि नाबालिग के रूप में मुकदमा चलायी जाती है, तो बच्चे को अधिकतम तीन साल के लिए स्पेशल होम में भेजा जा सकता है। यदि एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलायी जाती है, तो बच्चे को जेल की सजा सुनाई जा सकती है जिसमें मौत या आजीवन कारावास की सजा शामिल नहीं है।

NCPCR द्वारा जारी प्रारंभिक मूल्यांकन मसौदा दिशानिर्देश

NCPCR द्वारा जारी मसौदे में कहा गया है कि प्रारंभिक मूल्यांकन में चार पहलुओं को निर्धारित करना होगा:

  • 1. बच्चे की शारीरिक क्षमता का आकलन करना;
  • 2. मानसिक क्षमता का आकलन;
  • 3. जिन परिस्थितियों में अपराध कथित रूप से किया गया था;
  • 4 . कथित अपराध के दुष्परिणामों को समझने की क्षमता का आकलन।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

बता दें कि 13 जुलाई, 2022 को, सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में कक्षा 2 के एक छात्र की 16 वर्षीय लड़के द्वारा कथित हत्या से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन का कार्य एक “नाजुक कार्य” है।

यह भी कि बच्चे पर वयस्क या नाबालिग के रूप में मुकदमा चलाने के आकलन के परिणाम “गंभीर प्रकृति के हैं और बच्चे के पूरे जीवन के लिए स्थायी प्रभाव डालते हैं।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और निर्देश दिया जाता कि उचित और विशिष्ट दिशा-निर्देशों को लागू किया जाए।

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