लद्दाख को छठी अनुसूची में (Sixth Schedule) शामिल करने की मांग क्यों उठी है?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक संसदीय पैनल को सूचित किया है कि संविधान की छठी अनुसूची (Sixth Schedule of the Constitution) के तहत जनजातीय आबादी को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य उनके समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिश्चित करना है, जिसका केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख प्रशासन पहले से ही ध्यान रख रहा है”। केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह जवाब केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग पर आया है।
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग क्यों उठी है?
बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को, जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया था। जहाँ जम्मू और कश्मीर में विधान सभा के गठन का प्रावधान किया गया है, वहीं लद्दाख में विधान सभा के गठन का प्रावधान नहीं है।
लद्दाख का विशेष दर्जा हटाए जाने के बाद, वहां के कई राजनीतिक समूह मांग कर रहे हैं कि लद्दाख की भूमि, रोजगार और सांस्कृतिक पहचान को छठी अनुसूची के तहत संरक्षित किया जाना चाहिए।
लद्दाख में सभी राजनीतिक दल, प्रभावशाली बौद्ध संघ और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) के प्रतिनिधित्व वाला एक शीर्ष संगठन राज्य का दर्जा दिए जाने और इसे छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
लद्दाख के एकमात्र लोकसभा सदस्य, भाजपा के जामयांग सेरिंग नामग्याल ने 2021 में, छठी अनुसूची के तहत भूमि, रोजगार और लद्दाख की सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिए लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय जिला परिषद (LAHDC) अधिनियम में संशोधन करके संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग की थी।
बाद में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने राज्यसभा में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया कि 2011 की जनगणना के अनुसार, केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में जनजातीय आबादी 2,18,355 है, जो कुल 2,74,289 की आबादी का 79.61% है। समिति ने सिफारिश की कि आदिवासी आबादी की विकास संबंधी आवश्यकताओं को देखते हुए केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को विशेष दर्जा दिया जा सकता है।
क्या है गृह मंत्रालय का जवाब?
इसके जवाब में, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि पांचवीं/छठी अनुसूची के तहत जनजातीय आबादी को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है उनका समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हो, और जिसे केंद्र शासित प्रशासन अपने गठन के बाद से ही सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
लद्दाख को उसकी समग्र विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि प्रदान की जा रही है।
मंत्रालय ने आगे कहा कि लद्दाख प्रशासन ने हाल ही में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीधी भर्ती में आरक्षण को 10% से बढ़ाकर 45% कर दिया है, जिससे आदिवासी आबादी को अपने क्षेत्र में विकास महत्वपूर्ण रूप से मदद मिलेगी।
छठी अनुसूची क्या है?
भारत के संविधान अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त प्रशासनिक डिवीजनों – स्वायत्त जिला परिषदों (ADCs) के गठन का प्रावधान करती है – जिनके पास राज्य के भीतर कुछ विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्तता है।
यह अनुसूची आदिवासी आबादी की रक्षा करती है, उन्हें स्वायत्तता प्रदान करती है। स्वायत्त विकास परिषदों के निर्माण के माध्यम से समुदाय खुद अपनी जमीन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कृषि पर कानून बना सकते हैं।
अभी असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में 10 स्वायत्त परिषदें मौजूद हैं। ADC में अधिकतम 30 सदस्य होते हैं और इनका कार्यकाल पांच साल होता है और ये भूमि, वन, जल, कृषि, ग्राम परिषदों, स्वास्थ्य, स्वच्छता, गांव और नगर-स्तरीय पुलिसिंग, विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज और खनन आदि के संबंध में कानून, नियम और विनियम बना सकते हैं।
असम में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद में 40 से अधिक सदस्य हैं और यह एक अपवाद है और इसे 39 विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है।
छठी अनुसूची पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम (प्रत्येक राज्य में तीन-तीन परिषद), और त्रिपुरा (एक परिषद) पर लागू होती है।
पूर्वोत्तर क्षेत्रोंके बाहर के किसी भी क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
सच तो यह है कि मणिपुर में, जहां कुछ स्थानों पर मुख्य रूप से जनजातीय आबादी है, वहां के स्वायत्त परिषदों को छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है। नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश भी, जो पूरी तरह से आदिवासी क्षेत्र हैं, छठी अनुसूची में शामिल नहीं हैं।
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