बेलगावी विवाद पर कर्नाटक और महाराष्ट्र फिर आमने-सामने

राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत भाषाई आधार पर राज्यों की सीमाओं का सीमांकन किया गया था। तब से  बेलगावी (Belagavi) का सीमावर्ती शहर कर्नाटक का एक हिस्सा रहा है। लेकिन इसको लेकर कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच अंतरराज्यीय सीमा विवाद हर समय भड़क उठता है।

हाल ही में, दशकों पुराना विवाद फिर से भड़क गया जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि कर्नाटक सरकार महाराष्ट्र में जत तालुक पर अपना दावे पर “गंभीरता से” विचार कर रही है।  इसके पश्चात महाराष्ट्र में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी।

श्री बोम्मई ने मीडिया को बताया कि तालुक की सभी 40 ग्राम पंचायतों ने संकल्प लिया है कि जत तालुक को कर्नाटक में शामिल होना चाहिए। उनकी टिप्पणी बेलगावी विवाद पर महाराष्ट्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अंतिम सुनवाई से पहले आई।

बेलगावी विवाद

बता दें कि दोनों राज्यों के बीच सीमा रेखा भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समय से चली आ रही है। 1957 में, सीमाओं के सीमांकन से नाखुश, महाराष्ट्र,कर्नाटक के साथ अपनी सीमा के पुनर्गठन की मांग करती रही है।

इसने अधिनियम की धारा 21 (2) (B) का हवाला देते मराठी भाषी क्षेत्रों को कर्नाटक में शामिल किए जाने पर आपत्ति जताते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की। इसने स्वतंत्रता से पहले बॉम्बे प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में 814 गांवों और बेलागवी, कारवार और निपानी की तीन शहरी बस्तियों पर दावा किया। इसने बेलगावी पर दावा ठोकते हुए 2004 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की।

इस बीच, कर्नाटक ने लगातार तर्क दिया है कि बेलगावी पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है। इसने अपनी स्थिति को साबित करने के लिए वर्ष 1956 के अधिनियम  और 1967 के महाजन आयोग की भाषाई आधार पर किए गए सीमांकन का हवाला दिया है।

यही नहीं कर्नाटक ने अपने क्षेत्र में कोल्हापुर, शोलापुर और सांगली जिलों (महाराष्ट्र के अंतर्गत आने वाले) के क्षेत्रों को शामिल करने का भी दावा किया है।

वर्ष 2006 से, कर्नाटक ने बेलगावी में विधानमंडल का शीतकालीन सत्र आयोजित करना शुरू किया, अपने दावे को फिर से साबित करने के लिए बेंगलुरु में विधान सौध की तर्ज पर जिला मुख्यालय में एक विशाल सचिवालय भवन का निर्माण किया।

1960 में, दोनों राज्यों द्वारा एक चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया था, लेकिन यह आम सहमति पर नहीं पहुंच सकी और प्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी सरकारों को रिपोर्ट सौंपी।

बाद के दशकों में, दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए कई बार मुलाकात की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।  बता दें कि 1966 में, महाराष्ट्र के आग्रह पर, तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने 1967 के आम चुनावों से कुछ महीने पहले न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन कमीशन का गठन किया। इसने सिफारिश की कि 264 गांवों को महाराष्ट्र में स्थानांतरित कर दिया जाए और बेलागवी (बेलगाम) और 247 गांव कर्नाटक के पास रहें। महाराष्ट्र ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया, जबकि कर्नाटक ने इसका स्वागत किया।

कर्नाटक ने तर्क दिया कि या तो महाजन आयोग की रिपोर्ट को पूरी तरह से स्वीकार किया जाना चाहिए, या यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए। अभी भी यही स्थिति कायम है।  

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