अश्लीलता मामला: भारतीय कानून क्या कहते हैं?
हाल ही में, महाराष्ट्र में एक नेता ने अधिकारियों से “मुंबई की सड़कों पर घूमने और अपने शरीर का प्रदर्शन करने” के लिए अभिनेत्री उर्फी जावेद के
खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की।
अश्लीलता के बारे में भारतीय कानून
- भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत, धारा 292, 293 और 294 अश्लीलता के अपराध से निपटने से सम्बंधित हैं।
- धारा 292 में अश्लीलता की एक अस्पष्ट परिभाषा प्राप्त होती। इसके अनुसार किसी भी सामग्री को अश्लील माना जाएगा यदि यह कामुक है या कामुकता के लिए अपील करती है, या यदि यह पढ़ने, देखने या सुनने वाले व्यक्तियों को भ्रष्ट करती है और कलुषित प्रभाव डालती है। यह धारा किसी भी अश्लील पैम्फलेट, किताब, कागज, पेंटिंग और ऐसी अन्य सामग्री की बिक्री या प्रकाशन पर रोक लगाती है।
- धारा 293: 20 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को अश्लील वस्तुओं की बिक्री या वितरण या ऐसा करने का प्रयास करने का अपराधीकरण करती है। हालांकि यह एक जमानती अपराध है, और पहली सजा के लिए अधिकतम सजा तीन साल की कैद और 2,000 रुपये तक का जुर्माना है, और दुहराने पर सात साल की सजा के साथ 5,000 रुपये तक का जुर्माना है।
- धारा 294 सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील हरकतें और गाने प्रतिबंधित करती है। इस आरोप के तहत दोषी व्यक्ति के लिए अधिकतम सजा तीन महीने की जेल और जुर्माना है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 कहती है कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने वाले को दंडित किया जा सकता है।
हिकलिन टेस्ट (Hicklin Test)
- वर्ष 2014 तक कंटेंट की अश्लीलता निर्धारण में न्यायालय द्वारा हिकलिन टेस्ट (Hicklin Test) मानक का इस्तेमाल किया जाता रहा है। रेजिना बनाम हिकलिन (1868) मामले में, लंदन में लॉर्ड चीफ जस्टिस अलेक्जेंडर कॉकबर्न ने कोर्ट ऑफ क्वीन्स बेंच के लिए निर्णय लिखते समय अश्लीलता की एक व्यापक परिभाषा दी जिसके अनुसार उस प्रस्तुति को अश्लील कहा जा सकता है जो खुले दिमाग वाले लोगों को कलुषित करे और भ्रष्ट करे।
- रंजीत डी उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य (1964) के मामले में डीएच लॉरेंस के उपन्यास लेडी चैटरलीज लवर (Lady Chatterley’s Lover) पर प्रतिबंध लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस टेस्ट को मानक अपनाया गया था।
- हालांकि, 2014 में, शीर्ष न्यायालय ने अवीक सरकार और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य मामले में हिकलिन टेस्ट को ख़ारिज कर दिया। यह मामला बोरिस बेकर और उनकी गर्लफ्रेंड की अर्ध-नग्न तस्वीर के प्रकाशन से संबंधित था।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोई विशेष तस्वीर, आलेख या किताब अश्लील है या नहीं, यह समकालीन लोकाचार और राष्ट्रीय मानकों के सम्मान के मानक पर निर्भर करता है न कि अतिसंवेदनशील या संवेदनशील व्यक्तियों के समूह के मानक का। कोर्ट ने भी कहा कि तस्वीर को संपूर्णता में लिया जाना चाहिए” और इस संदर्भ में यह देखा जाना चाहिए कि यह कंटेंट वास्तव में क्या संदेश देना चाहता है।