जोशीमठ शहर में भूमि धंसाव: क्या हैं कारण?
समुद्र तल से 6,150 फुट की ऊंचाई पर स्थित उत्तराखंड के चमोली जिले में बसा जोशीमठ शहर (Joshimath) के लोग जमीन धंसने (land subsidence) के साये में जी रहे हैं। जमीन धंसने की वजह से घरों में दरार पड़ रहे हैं। भूमि धंसाव (land subsidence) जमीन के धंसने या जमीन की सतह के व्यवस्थित होने की प्रक्रिया है।
जोशीमठ शहर
जोशीमठ राष्ट्रीय राजमार्ग 7 पर बसा है।
इस शहर को बदरीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब (सिख धर्मस्थली) और फूलों की घाटी का प्रवेश द्वार माना जाता है।
यह औली का भी मुख्य प्रवेश द्वार है, जहां एशिया की सबसे बड़ी रोपवे है।
भूमि धंसाव के कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि धंसाव के कारण नए नहीं हैं। ढीली चट्टानों वाली नाजुक पहाड़ी इलाकों पर अव्यवस्थित निर्माण, पानी की उपसतह का रिसाव, ऊपरी मृदा परत का क्षरण और मानव निर्मित गतिविधियों के कारण स्थानीय धाराएं अपना मार्ग बदल रही हैं जो उनके प्राकृतिक प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं।
धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों के संगम स्थल विष्णुप्रयाग के दक्षिण-पश्चिम में एक पूर्व-पश्चिम में चलने वाली रिज पर स्थित यह शहर भूगर्भीय रूप से संवेदनशील है।
जोशीमठ भारत में भूकंप के सबसे अधिक खतरे वाले जोन – 5 में स्थित है।
यह प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र में स्थित है।
यहां शैलानियों की संख्या भी दिनोदिन बढ़ रही है।
जोशीमठ के पास जल विद्युत परियोजना का कार्य भी जारी है। हेलंग-विष्णुप्रयाग बाईपास पर भी काम हो रहे हैं।
वर्ष 1976 की मिश्रा कमेटी रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र में है। यह शहर पहाड़ से टूटे बड़े टुकड़ों और मिट्टी के अस्थिर ढेर पर बसा है। कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा था कि जोशीमठ इलाके में वनों की कटाई भी जमीन धंसने में योगदान कर रहा है।
भूमि धंसाव को रोकने के लिए सुझाव
राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति ने भूमि धंसाव को रोकने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:
- जोशीमठ में ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर बनाया जाए,
- निचली ढलानों पर स्थित परिवारों को कहीं और बसाया जाए,
- निर्माण कार्यों पर तत्काल रोक लगायी जाये,
- यहां संसाधन विकसित करना और अन्य विकास कार्य जोखिमपूर्ण हैं।