अमेरिकी सीनेट ने मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता दी और अरुणाचल को भारत का ‘अभिन्न अंग’ बताया

अमेरिका ने 14 मार्च को औपचारिक रूप से मैकमोहन रेखा को भारत के अरुणाचल प्रदेश और चीन के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता दी है और बीजिंग के इस दावे को खारिज कर दिया कि यह पूर्वोत्तर राज्य चीनी क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

अमेरिकी सीनेट के दो सदस्यों ने क द्विदलीय संकल्प पेश किया था जिसमें दोहराया गया था कि अमेरिका मैकमोहन रेखा को अरुणाचल प्रदेश में चीन और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है।

‘अरुणाचल प्रदेश राज्य को भारतीय क्षेत्र के रूप में पुन: पुष्टि और दक्षिण एशिया में चीन के उकसावे की निंदा’ शीर्षक वाला प्रस्ताव भारत के पक्ष के उस पक्ष की पुष्टि करता है कि अरुणाचल प्रदेश, जिसे चीन ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है, भारत का अभिन्न अंग है।

मैकमोहन रेखा क्या है?

मैकमोहन रेखा ( McMahon Line) पूर्वी क्षेत्र में चीन और भारत के बीच वास्तविक सीमा के रूप में कार्य करती है।

यह विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच, पश्चिम में भूटान से लेकर पूर्व में म्यांमार तक की सीमा का प्रतिनिधित्व करता है।

चीन ऐतिहासिक रूप से इसे विवादित मानता रहा है और तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के हिस्से के रूप में अरुणाचल प्रदेश राज्य पर दावा करता है।

मैकमोहन रेखा 1914 के शिमला कन्वेंशन के दौरान खींची गई थी, जिसे आधिकारिक तौर पर ग्रेट ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच कन्वेंशन के रूप में वर्णित किया गया था।

इस कन्वेंशन ल्हासा में तिब्बती सरकार का प्रतिनिधित्व पलजोर दोरजे शत्रा ने और ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व दिल्ली में ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर आर्थर हेनरी मैकमोहन ने और चीन का प्रतिनिधित्व इवान चेन ने किया था।

कन्वेंशन के अंतिम टेक्स्ट पर ब्रिटिश सरकार की ओर से मैकमोहन और ल्हासा की ओर से शत्रा ने हस्ताक्षर किए थे। इवान चेन ने कन्वेंशन को मंजूर नहीं किया। उन्होंने तर्क दिया कि तिब्बत को अंतरराष्ट्रीय समझौतों में शामिल होने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं था।

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