हिमालय के तीन औषधीय पौधों को IUCN रेड लिस्ट में शामिल किया गया

Patwa (Meizotropis pellita), Image credit: Uttarakhand Forest Research Institute

हिमालय में पाई जाने वाली तीन औषधीय पौधों की प्रजातियों को हाल में IUCN रेड लिस्ट में एंडेंजर्ड प्रजातियों की सूची में वर्गीकृत किया गया है। ये तीन प्रजातियां हैं; मीज़ोट्रोपिस पेलिटा (क्रिटिकली एंडेंजर्ड श्रेणी), फ्रिटिलोरिया सिरोहोसा (वल्नरेबल श्रेणी), और डैक्टाइलोरिज़ा हैटागिरया/Dactylorhiza hatagirea (एंडेंजर्ड श्रेणी)

अधिक दोहन, हैबिटैट नुकसान इत्यादि वजहों इसे इन सूची में डाला गया है।

मीज़ोट्रोपिस पेलिटा (Meizotropis pellita): इसे आमतौर पर पटवा के नाम से जाना जाता है। यह सीमित क्षेत्र वाली एक बारहमासी झाड़ी है जो उत्तराखंड की एंडेमिक है यानी केवल यहीं पायी जाती है। प्रजाति को वनों की कटाई, हैबिटैट नुकसान और जंगल की आग से खतरा है। इसकी पत्तियों से निकाले गए आवश्यक तेल में मजबूत एंटीऑक्सिडेंट होते हैं और यह दवा उद्योगों में सिंथेटिक एंटीऑक्सिडेंट के लिए एक प्राकृतिक विकल्प हो सकता है। पटवा (मीज़ोट्रोपिस पेलिटा) आमतौर पर नैनीताल के पास पटवाडांगर में पाया जाता है। पटवाडांगर तब से प्रसिद्ध है जब एक अंग्रेज ने पटवाडांगर में रेबीज का इंजेक्शन बनाया था।

फ्रिटिलारिया सिरोसा (Fritillaria cirrhosa): इसे हिमालयन फ्रिटिलरी भी कहा जाता है और एक बारहमासी बल्बनुमा हर्ब है। चीन में, इस प्रजाति का उपयोग ब्रोन्कियल विकारों और निमोनिया के इलाज के लिए किया जाता है। इस पौधा को कफ के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।

Dactylorhiza hatagirea (Salampanja) : इसे पेचिश, जठरशोथ, क्रॉनिक फीवर, खांसी और पेट दर्द को ठीक करने के लिए आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी और चिकित्सा की अन्य वैकल्पिक प्रणालियों में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।

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