तमिलनाडु ने विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों के लिए समय सीमा निर्धारित करने की मांग वाला संकल्प पारित किया

तमिलनाडु विधानसभा ने 10 अप्रैल को एक संकल्प पारित कर केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि  वह  राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों  पर राज्यपाल की मंजूरी  देने के लिए एक समय सीमा तय करे।

तमिलनाडु विधानसभा का यह संकल्प ऐसे समय में आया है जब  कई विधेयक मंजूरी का इंतजार कर रहा है और राज्यपाल ने टिप्पणी की कि  जिन विधेयकों पर अनुमति रोक दी गयी है, उन्हें “मृत” माना जाना चाहिए। सितंबर 2021 में पदभार ग्रहण करने के बाद से राज्यपाल को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित लगभग 20 विधेयकों पर अपनी सहमति देनी है।

राज्यपाल का पक्ष

हाल में, तमिलनाडु के राज्यपाल ने कहा कि राज्यपाल एक संवैधानिक संस्था है और उसकी पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संविधान की रक्षा करना है।

इसके बाद उन्होंने विधानसभा द्वारा पारित और सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों के संबंध में संविधान के अनुसार एक राज्यपाल की भूमिका के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि राज्यपाल विधानमंडल का हिस्सा है जिसमें विधानसभा और विधान परिषद (जहां यह मौजूद है) भी शामिल हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक को सहमति देना एक संवैधानिक जिम्मेदारी है: और राज्यपाल को यह देखना होगा कि क्या विधेयक संवैधानिक सीमा से परे तो नहीं है और क्या राज्य अपनी क्षमता से बाहर तो नहीं जा रहा  है।

पारित विधेयक के सम्बन्ध में राज्यपाल के अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, जब कोई विधेयक विधानसभा द्वारा पारित किया जाता है और राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा जाता है, तो राज्यपाल के तीन विकल्प होते हैं – वह सहमति देता है, सहमति रोक लेता है; या इसे राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर देता है।

कुछ मामलों में, यदि विषय समवर्ती सूची में हो और किसी राज्य ने उस पर विधेयक पारित किया हो, तो राज्यपाल सहमति नहीं दे सकता यदि संसद ने उसी विषय पर एक कानून पारित किया है।

राज्यपाल ऐसे विधेयक को राष्ट्रपति को प्रेषित करता है।  राज्यपाल किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानमंडल को भेज सकता है।  

यदि विधानमंडल विधेयक को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के फिर से पारित करता है तो राज्यपाल उस पर सहमति नहीं रोक सकता, बशर्ते यह कि वह  राष्ट्रपति के विचार के लिए इसे आरक्षित न कर दे।

संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक को राज्यपाल ख़ारिज नहीं कर सकता है। संविधान  किसी विधयेक पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल के लिए समय सीमा प्रदान नहीं करता है।

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