समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शामिल करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है

सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह (same ­sex marriage) की अनुमति देने संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है।

विशेष विवाह अधिनियम 1954 (Special Marriage Act of 1954) उन जोड़ों के विवाह को कानूनी दर्जा प्रदान करता है जो अपने धर्म के पर्सनल लॉ के तहत शादी नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने समलैंगिकों सुप्रिया चक्रवर्ती (सुप्रियो) और अभय डांग की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत गयी है। याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना भेदभाव है जो LGBTQ+ जोड़ों की गरिमा और आत्म पूर्ति की जड़ पर चोट करती है।

समलैंगिक विवाह के समर्थन में तर्क

यह नवतेज जौहर मामले में 2018 की संविधान पीठ के फैसले की अगली कड़ी है। नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पुट्टास्वामी (Puttaswamy) मामले में निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार माना था।

1954 के अधिनियम को समलैंगिक जोड़ों को वही सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए जो अंतरजातीय और अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को मिली हुई हैं।

यह किसी धर्म के पर्सनल लॉ को प्रभावित नहीं करता है बल्कि केवल 1954 के अधिनियम को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग करता है।

अधिनियम केवल यही कहता है कि विवाह ‘दो व्यक्तियों’ के बीच होना चाहिए। यह नहीं कहता कि यह A और B का मिलन है।

1954 का अधिनियम संविधान का उस सीमा तक उल्लंघन करता है जिस हद तक यह समलैंगिक जोड़ों और विपरीत लिंग के जोड़ों के बीच भेदभाव करता है और समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकारों के साथ-साथ विवाह से मिलने वाली सामाजिक मान्यता और स्थिति दोनों से वंचित करता है।

1954 का विशेष विवाह अधिनियम किसी भी दो व्यक्तियों के बीच विवाह पर लागू होना चाहिए, भले ही उनकी लैंगिक पहचान और जेंडर ओरिएंटेशन कुछ भी हो।

समलैंगिक विवाह के खिलाफ तर्क

समलैंगिक विवाह भारतीय संस्कृति और भारतीय धर्मों के खिलाफ है, और भारतीय कानूनों के तहत अमान्य है।

भारत में विवाह को एक पवित्र ‘संस्कार’ माना जाता है, जबकि अन्य देशों में विवाह एक अनुबंध है।

भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि जैविक पुरुष और स्त्री के बीच एक संस्था है।

न्यायिक हस्तक्षेप “पर्सनल लॉ के नाजुक संतुलन के पूर्ण विनाश” का कारण बनेगा।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के बारे में

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद द्वारा बनाया गया कानून है जिसमें भारत के लोगों और विदेशों में रह रहे सभी भारतीय नागरिकों के लिए कानूनी विवाह का प्रावधान करता है, भले ही किसी भी पक्ष द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाता हो।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह दो अलग-अलग धार्मिक और जाति पृष्ठभूमि के लोगों को विवाह के बंधन में बंधने की अनुमति देता है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 विवाह के अनुष्ठान और पंजीकरण, दोनों के लिए प्रक्रिया निर्धारित करता है, जहां पति या पत्नी या दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हैं।

इस अधिनियम के अनुसार, जोड़ों को विवाह की निर्धारित तिथि से 30 दिन पहले संबंधित दस्तावेजों के साथ विवाह अधिकारी को एक नोटिस देना होता है।

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