सर्वोच्च न्यायालय ने ‘ग्राम न्यायालय’ स्थापित करने की याचिका पर उच्च न्यायालयों को नोटिस जारी किया
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 14 नवंबर को सभी उच्च न्यायालयों से 2019 की एक याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें केंद्र और सभी राज्यों को शीर्ष अदालत की देखरेख में ‘ग्राम न्यायालय’ स्थापित करने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
जस्टिस एस ए नज़ीर और वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया और उन्हें मामले में पक्षकार बनाया।
ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalayas) के बारे में
नागरिकों को उनके द्वार पर न्याय प्रदान करने के लिए, केंद्र सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 को अधिनियमित किया है। यह मध्यवर्ती पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 की धारा 3 (1) के अनुसार, संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं।
हालाँकि, यह अधिनियम ग्राम न्यायालयों की स्थापना को अनिवार्य नहीं बनाता है।
ग्राम न्यायालयों में न्यायाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है।
ग्राम न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) में प्रदान किए गए डिक्री के निष्पादन के संबंध में प्रक्रिया से बाध्य नहीं होते हैं और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं।
ग्राम न्यायालय इस अधिनियम के तहत प्रदान किए गए तरीके और सीमा तक, सिविल और क्रिमिनल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है।
अब तक 15 राज्यों द्वारा 476 ग्राम न्यायालयों को अधिसूचित किया गया है। इनमें से 256 वर्तमान में 10 राज्यों में कार्यरत हैं।
केंद्र सरकार वित्तीय सहायता प्रदान करके राज्यों को ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करती रही है।
योजना के अनुसार, केंद्र सरकार राज्यों को ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए गैर-आवर्ती खर्चों (non-recurring expense) के लिए एक बार सहायता प्रदान करती है, जिसकी अधिकतम सीमा 18.00 लाख रुपये प्रति ग्राम न्यायालय है।
केंद्र सरकार इन ग्राम न्यायालयों के संचालन के लिए आवर्ती व्यय (recurring expenses) के लिए भी सहायता प्रदान करती है, जिसकी अधिकतम सीमा प्रतिवर्ष 3.20 लाख रुपये प्रति ग्राम न्यायालय प्रथम तीन वर्षों के लिए है।